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जेम केशीकुमार ॥ गुरु ॥१॥ लाख क्रोमथी पण घणा, जो कीजें हो गुरुने नपगार ka
ओसिंगल अश्एं नही, गुरुकेरो हो महोटो प्रतिकार ॥ गुण ॥२॥ मात पिता सुत कामिनी, निजअर्थे हो इहां करे नपगार ॥ इह परनव स्वारथविना, नपकारी हो गुरु करुणागार ॥ गु॥ Vlu ३ ॥ मातपिता गुरु ते भला, ते साचा हो वाला जगमांहि ॥ शास्त्रोपाय देई करी,
जे काढे हो दुर्गतिथीसाहि ॥ गुण ॥४॥ मनमां एहवं चिंतवी, संवेगीहो शु साधु महंत ॥ कीधो अन्निग्रह गुरुतणो, में करवं हो वात्सल्य निव्रत ॥ गुण ॥५॥ त्रिविध त्रिविध आशातना,
गुरु केरी हो टाले तेत्रीश ॥ मथनी पुण्य सायरतणी, गुरुन्नक्तिहो शुद्ध साधु मुनीश ॥ गुण an६ ॥ देशकालोचित्त जोश्ने, नात पाणीहो औषधनें वस्त्र ॥ वात्सल्य करे इत्यादिकें, गुरुकेलं हो
नवतरूवर शस्त्र ॥ गुण ॥ ७ ॥ अंगमर्दकनी परे करे, गुरू मुनिनोहो मईन सुप्रसाद ॥ अवसर
जाणीने करे, वली जाणीहो नत्सर्ग अपवाद ॥ गुण ॥ ॥ षटत्रिंशत् गुण गुरुतणा, नित्य ध्यावेsa Salहो निज हृदय मोकार ॥ मुखें परपूवें स्तुतिकरे, सहु आगेंहो कही गुरुआचार ॥ गुण ॥ ए॥श्म
सुसमाधि सिद्धांतनी, मुनिपाले हो आज्ञा सुप्रमाण ॥ लीनात्मा ते ध्यानमां, दांतिधारी हो नहीं। ममता माण ॥ गुण ॥ तीर्थकरपद संपदा, नपावेहो गुरु नक्ति तेह ॥ सर्वधर्मनुं मूलने, निशि दीवसे हो करे विनय सनेह ॥ गुण ॥११॥ईणी अवसर सुरनी सन्ना, मांहे बेगहो इंद्रे कीध प्रशंdस ॥ नक्ति परमगुरुनी करे, मुनिराजा हो धनधनीकुलवंश ॥ गुण ॥१२॥ क्षेत्र नरतमाहे जेहवो
गुरु नक्तोहो पुरुषोत्तम साध ॥ तेहवो बीजो कोई नहीं, जगजोता हो मुनिगुणो अगाध॥ गुण Ram १३ ॥ सांप्रत हमणां को नहीं, सीतल ताही जसु हृदय निकोप ॥ ईम गुरुन्नक्ति समाचरे, जे
आपे हो त्रिनुवनमें ओप ॥ गुण॥ १५ ॥ईम निसुणी कोई देवता, ईर्षालु हो मिथ्यात्वी कोई॥
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