Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 255
________________ मिथ्यादृग निंदा करी, आगम निसुणी राय ॥ दूनमना मौनी रह्यो, उत्तर तसु न देवाय ॥४॥ तिणे अवसर आव्या तिहां, अमरचंद्र मुनिराय ॥ समवसर्या नद्यानमें, केवलज्ञान दीपाय ॥ ५ ॥ ॥ढाल ४ थी॥ आगम अर्थ हीये धरो॥ एदेशी ॥ नुलटन्नावें आवीया,गुरुने नमवा राय॥ ते पंडित साथे करी, पूरीजनसुं राय ॥ न ॥ १॥ कनककमल दल नपरे, बेठा धरम प्रकाशे ॥ नविलोक सहु सानले, निज मनमें नलासें ॥ न॥ ॥२॥लक्ष्मी रुप सुत निरमलो, शील विनय विवेको ॥ सम औदार्य न पामीयें, विण पुण्ये एको॥ न ॥३॥ धीमंत जे कुलज कमी, सत्य व्रत शीलवानो ॥ विनयैश्वर्य दयायुत, शुचि सलज Salश्रीमानो ॥ न॥४॥ सञोगी गुरु देवर्नु, नक्ति युक्तिदातारो ॥ एहजपुत्र सुकृती तणो, सफलो जमवारो ॥ न० ॥ ५ ॥ इत्यादि दीधी देशना, नृप कहे शिरनामी ॥ प्राकृत आगम जिनवरें, किम कीधां स्वामि || नण॥६॥नचरतां केवली कहे, अंगी सुख माने ॥लाषा श्री अरिहंतनि, अर्थ मागधी Salनामें॥न॥७॥यतः॥बालस्त्री मंदमूर्खाणां नृणां चारित्रकांदिणां ॥ अनुग्रहाय तत्वज्ञैः सिशंतः। प्राकृतः कृतः ॥ १॥ अर्थः-कारणके कर्वा जे चारित्रनी आकांदाकरनार बालक स्त्रियो मंदबुद्धि अने मुर्खलोकोना अनुग्रह माटे तत्वना जाणनारा जिनोए सिद्धांत प्राकृत नाषामां करेलां , वचन जिनेशगमतणां, डे अर्थ अनंता ॥ अगम अगोचर ए सदा, मिथ्याइष्टि ते ब्रांता ॥ न ॥७॥ पात्र नहि जिन सारिखं, गुरु सम नपगारि॥ सुकृत जिनार्चा सम नहि, बंधु धर्म विचारि ॥ न Sen ॥ कर्मश्रकी अन्य को नहि, वैरी त्रिन्नुवनमें ॥ ज्ञानसमुं लोचन नहि, शोची जूवो मनमें Na न॥ १०॥ श्रीसिद्धांतथकी नहि, बीजो किमपि गंजीर ॥ अमृत गुरुवाणी समुं, नहि अन्य सधीर ॥ न ॥ ११ ॥ नृप अनिप्राय जाणी करी, पूजे केवलनाणी ॥ मिथ्यात्वी पंमित नणी, लोकने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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