Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्थान
वीश हित आणी ॥ १० ॥१॥ सचराचर लोक ए कहो, नित्य अस्ति वा अनित्यो॥ शेरुपे नित्यानित्यने, १२३॥
नाखो तुमें सत्यो॥ न ॥ १३ ॥ प्रत्युत्तर देश नवि शक्या, केवलिने तेहो ॥ सम्यकदृष्टि सहु श्रया, |पंमित गुण एहो ॥ न ॥ १४ ॥ मूर्ख न समजे समकिते, पंमित नर सोहेला ॥ हठ डोमेन कदाग्रही, दाधा रींगा दोहेला ॥ न ॥ १५ ॥ मुनि स्वामी तेहने कहे, एम सुललित वाणी ॥ श्रेयमूल जाणीकरी, करो श्रुत नक्ति प्राणी ॥ न० ॥१६॥ सकलझाननो गुरु कह्यो, श्रुतझान विचारो॥ करे|
अवबोध स्वरूप नणी, दीप जिम विस्तारो॥न ॥१७॥ विविध धर्म जिनशासने, तेहने आराधो॥ Sel अंगोपांग सम्यकपरें, श्रुतज्ञान प्रकारो॥न॥१॥यतः॥ मोहं धियोहरति कापथमुचिनत्ति ॥ संवेग Salमुबयति सत्प्रशमं तनोति ॥स्वर्गापवर्गपदवीमुदमातनोति, जैनं वचः श्रवणतः किमु नातनोति॥१॥ NEअर्थः-बुझिना मोहने हरे , कुत्सित मार्ग पाखंडनो नबेद करे , संवेगनी वृद्धि करे , श्रेष्ट एवा Sal
प्रशमने विस्तारे , अने स्वर्ग तथा मोदनी पदवी संबंधि हर्षनो चोतरफ वधारो करे . श्रीजि-Ral ननां वचनो,श्रवण करवाश्री कर वस्तुओनो विस्तार करतां नयी ? अर्थात् सर्वपदार्थोने आपे नेते नर दुर्गति नवि लहे, मूके नहि जमन्नावो ॥ नैवांधता बुद्धिहीनता, नक्ति आगम रावो॥नारणा जे करे श्रुत आशातना, ते दुर्गति पामे ॥ तेहने जो बहु मान दे, पूज्य पद तेओ कामे ॥ न० ॥२॥ केवलझानीनी वाणीए, एहवी सुणी राजा ॥श्रुतन्नक्ति करवा व्रत लियुं, गृहेवा सुख ताजां॥kal न ॥ २१ ॥ च्यन्नाव सुप्रकारथी, श्रुतत्नक्ति नरिंदो ॥ विधिसुं नित नावे करे, क्लिष्ट रिष्ट निकंदो ॥१३॥ ॥ न० ॥ २२ ॥ श्रुतज्ञानवंतनणी सदा, वस्त्रपान अन्नदानो, आपे नक्ति करे घणी, जिनहर्ष राजानो ॥ न ॥ २३ ॥ सर्वयाथा ।। १२५ ॥
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