Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 259
________________ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे थानक कहुं वशमुं, शाश्वत सुखदातार ॥ सकलजंतु श्रानंदकर, दर्शन निर्मलकार ॥ साधु श्रावक गुणवंत जे, सघला विधिना जाएग ॥ जिनशासन सुप्रभावना, करवी धरि जिन आण ॥२॥पूर्व भवोदय नवि लह्यो, ते तीर्थोत्सवें लड़ंत ॥ श्रेणिक कृष्णतली परे, जिनपतिपद पामंत ॥३॥ श्री जिनेऽगृह नःइरे, मुर्ति भरावे प्रौढ ॥ तीर्थजली यात्रा करे, स्नात्रोत्सव आरूढ ॥ ४ ॥ प्रौढ प्रतिष्ठा कारवे, साहमी भक्ति नमेद ॥ प्रत्यनीक शासनतला, तेहनो करे नवेद ॥ ५ ॥ प्राचार्यादिक पद तथा करे महोत्सव सार ॥ लब्धि देखाने बहुपरे, जिनशासन जयकार ॥ ६ ॥ पुण्यकार्य करणी करी, रंजे सघलो लोय ॥ तथा जिनेंद चोखाइए, अष्ट प्रजाविक होय ॥ ७ ॥ यतः ॥ पावयली १ धर्म कही २ वा ३ निमित्तियो ४ तवसीवा ए विका ६ सिधोय, कवीत श्रग्ये पनावगा जलिया ॥ १ ॥ जिनशासन सुप्रज्ञावना, करे पुण्योत्सव जेह ॥ मेरुमन राजापरे, पामे जिनपद तेह ॥ ८ ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ आदर जीव कमा गुण आदर ॥ देश ॥ तत्रम पुरराजे, सूर्यपुरानिध जाजी ॥ राजा तिहां अरिदमण बिराजे, अरिनां दमीयां प्राणजी ॥ २ ॥ जूवो पुण्य सकल सुखदायी, पुण्यें कष्ट पलायजी ॥ पुष्यें विलास लहे निरंतर, अरि लागे पायजी ॥ जूवो ॥ ३ ॥ ते राजाने बे पटराणी, मदन सुंदरी नामजी ॥ मेरुमन मे - रुमन उन्नत, तेहनो सुत अभिराम जी ॥ जू० ॥ ३ ॥ रत्नमंजरी बीजी राणी, तेहने बहु मान जी ॥ महासेन नामें सुत तेहनो, प्राक्रम जीम समान जी ॥ जू० ॥ ४ ॥ पापणि तन्माता निजसुतने, राज्य इवा धारेह जी ॥ घाइ तेणे हाये मेरुप्रजने, 'विष देवरावे तेह जी ॥ ५ ॥ जू० ॥ ३२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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