Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 263
________________ लोलनो देश तास, रायतणुं मन अयुं उदास ॥ मेलो राज कह्यो ते खरो, बापन्नणी मारे दीकरो an०॥रात दिवस मनमें रहे शेह, जीम वाधे तेम अधिको मोह ॥ एहथी पाये ऽर्गति पात, सुंणी वेदपुराणे वात ॥ २१॥ आव्यो हृदय कमल संवेग, एद राज्यथी थाय नझंग ॥ माहरे नहीं को एहसुं काज, महासेनने दी● राज ॥ २२ ॥ अन्नयघोष आचारजपास, संयम लीधो मन उल्लास ॥ हादशांग ऋषिराय अधीत, गीतारथ थयो तेह वदीत ॥१३॥ योग्य जागी स्थाप्यो निज Kaपाट, सहुना मनमें थयो गहगाट ॥ श्रीजिनशासन नानुं समान, कहे जिनहर्ष धरो तस ध्यान र ॥दोहा॥ Nal नम्र विहारे विहरता, सोनागी सुविवेक ॥ चित्रकूट पधारिया, पृथ्वी लोचन एक ॥ १॥ नगर Raपोलने बारणे, समवसरया मुनिराय ॥ ये प्राणीने देशना, मीठी अमृत प्राय ॥ २ ॥ सांभली| तेहनी देशना, यह थयो प्रत्यक ॥ श्रादरीयुं समकित तिणे, धर्मतणुं जे मुख्य ॥ ३॥ विश्वनणी आल्हादकर, नाटक विविध प्रकार ॥ नाकी प्रीत धरी कीयो, मुनि आगल तिणीवार ॥४॥ नृप जितारि नगरीधणी, सांभली कीर्ति विशाल ॥ नगरलोकसुं परीवरयो, वांदे मुनि नूपाल ॥ ५ usa ॥ ढाल ३ जी ॥ तुंगीया गिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी ॥ | कनकनीरज देवें कीधो, बेसी नपरे तासरे ॥ तेहने प्रतिबोध काजे, देशना दे खास रे ॥॥१॥ पार नहि संसार सागर, दुःखनो भंडाररे ॥ एहमांहे पझ्या नरने, कोई नहीं आधार रे ॥ कण ॥॥ जन्मनुंदुःख जरानुं दुःख,मरण- दुःख जोर एह दुखथी बूटवा रे,आपणुं बल फोक रे॥क॥३॥ अंगथी परमाद परिहरी, धर्म करी चित्त लाय रे ॥ धर्म पाखे होय दुखीयो, धर्मश्री सुख प्राय रे ॥ कण् ॥ ४॥ धर्मना बेन्नेद दाख्या, सर्व देशथी जाण रे ॥ आद्य तो अणगार केरो, हितीय Jain Education international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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