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वश
॥३॥
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खियें ॥ अंगथकी बलि नपजे रोग || पण तेहनो न गमे संयोग ॥ १६ ॥ राजा मनमें चिंते इसुं, | पुत्र अधर्मी कीजे किसुं ॥ धर्मतली मति नावे किमे, वालो अंगज पण नवि गमे ॥ १७ ॥ अन्य दिवस पूरवर उद्यान, सूरि जस इति ज्योति प्रधान ॥ एहवा श्राव्या श्रुत केवलि, श्रीशांतिसूरि मन रलि ॥ १८ ॥ पटकायाना राखणहार, श्री सम्यक्त्व धर्म दातार । टाले नव जवना दुखदाह, मोक्षनगरना सारथवाह ॥ १५ ॥ समिति गुप्तिना पालाहार, गुण बत्रीशतला भंडार ॥ पंचमहात्रतना प्रतिपाल, कडे जिनदर्ष नमो त्रि काल || २० || सर्वगाथा ॥ २६ ॥
॥ दोहा ॥
राजा ही वधामणी, गुरु आाव्यानी ताम ॥ दीध वधाइदारने, मुहना माग्या दाम ॥ १ ॥ हय गय रथ पायक सजी, मुनि वंदन नरनाथ ॥ चाल्यो प्रति नत्साहसुं, कुमरनी लेइ साथ ॥ २ ॥ पांचे अभिगम सांचवी, देश प्रदक्षिणा तीन ॥ नरिंद मुनींइनली नम्यो, चरणे श्रइ रह्यो लीन ॥३॥ आगल वेठी पर्षदा, आगल बेठो राय ॥ पीवा मुनिनपदेश जल, चातक जिम चित लाय ॥ ४ ॥ विकथा दूर तजी करी, तजी बंघ परमाद ॥ गुरु सन्मुख जोइ रह्यो, तजी सयल विषवाद ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ बीजी ॥ आदि जिद मया करो ॥ एदेशी ॥
स्थान
मुनिवर देशना, परनपगारी मुलिंदोरे ॥ मिथ्या तिमिर निवारवा, ए तो प्रगटयो जाणे ॥ दिदोरे ॥ ० ॥ १ ॥ धर्म विना सुख संपदा, जे चाहे लोक अन्नाणी रे ॥ घृत लेवाने कारणे, ते मूढ वलोवे पाणी रे ॥ ० ॥ २ ॥ नरनव लहेतां दुलहो, ते पामे पुण्यवसाये रे ॥ धर्म करे ॥३॥ नहीं जडमति, चिंतामणि ते गमाये रे ॥ ० ॥ ३ ॥ पामी नरजव दोहिलो, परमादे गमे निटोलो रे ॥ ते मूरख रजसुं नरे, सोवन थाल अमोलो रे ॥ ० ॥ ४ ॥ अमृत दीधुं देवता, तेहसुं चरण
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