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जधन्य मध्यम नत्कृष्टता रे लाल ॥ धर्मना चार प्रकार ॥ मो ॥ तीन नेद एक एकना रे लाल ॥ सत्वांदिक चित धार ॥ मो॥११॥ कण ॥ परम श्रद्धाए नावसुं रे लाल ॥ मन वच काया विशुःला मो॥ धर्म करे कांक्षा विना रे लाल ॥ सात्विक ते कह्यो बुध ॥ मो० ॥१॥का सत्कार मानपूजारथे रे लाल ॥ धर्म करे यश काज ॥ मो॥ राजस एह कहीजीयरे लाल, कलाकांक्षी
ऋषिराज ॥मो॥१३॥क मिथ्यात्वें पडियो श्रको रे लाल ॥ करे क्रिया सहु जेह ॥मोण॥ अथवा Nalपर नजेदवारे लाल ॥ तामस सुकृत तेह ॥ मो० ॥१४ ॥ कण ॥ सात्विक सुकृत सर्वोत्तमो रे Raलाल ॥ सहु सुखनो दातार ॥ मो० ॥ त्रिधा शुद्ध नावें करयो रे लाल ॥ शालिननी परे धार ॥
मो॥१५॥ क॥ राजस सुकृत जाणिये रे लाल ॥ किंचित् शुहि वहंत ॥ मोए ॥ तेहथी स्वर्गनी संपदा रे लाल ॥ ज्ञानी एम कहंत ॥ मो ॥१६॥ कण ॥ पापानुबंधि पुण्यनो रे लाल ॥ नदय जेहथी होय॥ मो॥ तामस तेहथी कहीजीये रे लाल ॥ सांजलजो सहु कोय॥मोणार॥ जिनवरें पूजा रचे रे लाल ॥ मुनिवंदन पात्रं दान ॥ मो० ॥ सत्वथी धर्म कीधो होवे रे लाल ॥ शिवसुखन्नणी निदान ॥ मो॥१०॥ कण ॥ सम्यग दर्शन शुतुं रे लाल, क्रिया सफल सहु मान॥ मो॥ मिथ्यात्वे ते दुःखितारे लाल ॥ उगान्तरणोपमान ॥ मो० ॥ १७॥ कण् ॥ सन्निलि एहवी देसणारे लाल ॥ सागर धरिय नलास ॥ मो० ॥ श्रावकधर्म सम्यक्त्वसुंरे लाल ॥ आद
पास ॥ मो॥३०॥क०॥ गुरुवंदी आगल चल्यो रे साल ॥ नपअंगज तिणिवार ॥ मो॥ सेना दीठी आवती रे लाल ॥ कहे जिनहर्ष अपार ॥ मो॥ १ ॥ क॥ सर्वगाथा र १ सात्विक २ राजस ३ तामस
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