Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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वीश दिवस नत्सव करी, अरिहंत चैत्य नदार ॥ नवसमुश्मां नाव सम, लीधो संयमन्नार ॥ ७॥ राज- स्थान
ऋषि सागर वली, नणिया अंग अगियार ॥ अष्टादश थानकतो, गुरुमुख सुण्यो विचार ॥॥ ॥११॥
॥ ढाल मी ॥ काऊोरिया मुनिवर ॥ ए देशी ॥ sil निशने विकथा तजी जी, समिति गुप्ति धारंत ॥ साधुनणे नद्यम करीजी, विधिपूर्वक सिद्धांत saln १ ॥ धन्य धन्य ते नरवरा, जे गेमे संसार ॥ पाये नमियें तेहना, आणी प्रेम अपार ॥ गुण
गृहियें तो लहीयेंरे नवसायरनो पार ॥ ध० ॥२॥ नत्तमनी रे अनुमोदना, कीजियें नरनार ॥
दय करे क्षणमात्रमांजी, नव दुष्कर्म अनेक ॥ ज्ञान अने नपयोग बेजी, निर्जराहेतु विवेक ॥ धन Krilu ३ ॥ वीश धानकसेवाथकी जी, तीर्थकरनाम बंध ॥ अष्टादश पण सेवतांजी, जिनपद होय ।
संबंध ॥ ध॥४॥ सम्यग वाचना प्रबनांजी, चिंतनधर्माख्यानार्थ ॥ लणतां शास्त्र नवनवांजी शुनकर्म अर्जे कृतार्थ ॥ ध ॥ ५ ॥ वाणी एहवी सानली जी, गुरुनी सर्वांगीण ॥ श्रुत अपूर्व नणवातणो जी, अन्निग्रह लीधो प्रवीण ॥ ध ॥ ६ ॥ प्रथम पोरसीने विषेजी, विधिशुं करे सम्झाय ॥ बीजी पोरसिए वलीजी, अर्थ चिंतन निर्माय ॥ध ॥ ७॥ आहार पाणी गवेषणाजी
त्रीजी पोरसी करे साध ॥ श्रुत अपूर्व चोथी नणेजी, मनमें धरिय समाध ॥ ध० ॥ ७ ॥ एम Salअपूर्व श्रुतज्ञाननो जी, पाठक नद्यत चित्त ॥ ज्ञानाचार जिनाझयाजी, निरतीचार धरंत||धण्णा kaस्वामी अमरचंचातणो जी, चमरें मुनिवर तास ॥ स्थिरीन्नाव आत्मातणो जी, पर्षदामांहे प्रकाIN ॥ ध ॥ १० ॥ सागरचं मुनिसारिखोजी, श्रुतझानी नपयोगवंत || नहि कोई भरतावनि ??
जी, समतासिंधु महंत ॥ ध ॥ ११ ॥ हेमांगद सुर सानली जी, वासव वचन विलास ॥ सहवाहणा मन नाणतोजी, मिथ्यात्वोदय तास ॥ध ॥ १२ ॥ आव्यो सुर नतावलो जी, जयपुर
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