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आकरो हो लाल ॥ तप करी क्रोध संघात ॥ सु० ॥ ७ ॥ व० ॥ तप अज्ञान करी हवे हो लाल ॥थयो ते असुर कुमार ॥ सु० ॥ लघुचाता समकित युता हो लाल ॥ लीधो संयमनार ॥ सु ॥ ८ ॥ व ॥ तिरों पण तप कीधां घणां हो लाल, जितेंदिय निकषाय ॥ सु० ॥ अंग अगियार जण्यां ति हो लाल ॥ विनयें करि गुरुपाय ॥ सु० ॥ ए ॥ व० ॥ ज्येष्टनाइ जे देवता हो लाल ॥ पूरव वैर संभार ॥ सु० ॥ ते मुनिमारयो सुर थयो हो लाल || प्राणत दशम मोकार ॥ सु० ॥ १७ ॥ व || तिहांथी चवि सुत ताहरो हो बाल ॥ ए थयो पुण्यजंकार ॥ सु० ॥ ज्येष्टनाइ तिहांथी चवी हो लाल || नवमें जम्यो अपार || सु ॥ ११ ॥ व ॥ वली नरज्जव पामी करी दो लाल ॥ तापस दीक्षा लीध हो ॥ सु० ॥ अग्निकुमार थयो देवता हो लाल || दयानज्जित ए कीध ॥ सु० ॥ १२ ॥ व ॥ पूर्वजन्म वैरे करी हो लाल || सागर समुद्र मोकार ॥ सु० ॥ नृपामीने नांखियो होलाल ॥ निशिनर नि अपार ॥ सु ॥१३॥ व ॥ प्राग्भव आराध्यो इले हो लाल, चारित्र निरतीचार || सु || दुःख लह्यां न किहां इणें हो लाल ॥ सबलो पुश्य आधार || सु० ॥ १० ॥ ० ॥ त्रसथावर प्राणी तो हो लाल ॥ थाए जे प्रतिपाल ॥ सु० ॥ तेहने दुख पण सुखजली हो लाल ॥ थाए रंग रसाल ॥ सु० ॥ १५ ॥ ० ॥ एद सांजली देशना हो लाल || सागरचंद कुमार || सु० ॥ जाती समरण उपन्युं हो लाल, गुरुनली कदे तिणीवार || सु ॥ १६ ॥ ० ॥ संसार जमतां जंतुने हो लाल ॥ योनिमांहि दुखखाण || सु० ॥ कुल कोमी वलि केटली हो लाल || मुजने कहो हित आपण ॥ सु० ॥ १७ ॥ व ॥ वलतुं जांखे केवली हो लाल । सांजल राजकुमार ॥ सु० ॥ जोनीतणो कुलको डिनो दो लाल ॥ श्री जिनें कह्यो तिीवार ॥ सु० ॥ १८ ॥ व ॥ पूढव्यादिकनेद जूजुया हो लाल ॥ जीवघणा
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