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वीश
स्थान
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हाणा हो॥ एहवा पण केश्क होवे, करकश पाषाणा दो॥ कण ॥ए ॥ धरतो ष गोपरें; क्रूर मानस क्रोधी हो ॥ गणतजी जीम वनमें मुओ, रौध्यान विरोधी हो ॥ कण् ॥१॥ सातमी
नरकावनि गयो, नारकीमां दुखीयो हो ॥ तेत्रीश सागर आयुखे, साधुषी न सुखीयो हो ॥ Naक ॥ ११॥ क्रोध करे कारण विना, मुनि हीले निंदे हो ॥ बांधे कर्म ते चीकणां, नवमांहे कष्टे
हो ॥ कण् ॥ १२ ॥ श्म नवमें नमीयो घणुं, जिहां तिहां दुख पायो हो ॥ सहतां परवश वेदना, alबहु कर्म खपायो हो ॥ कण् ॥ १३॥ कौटुंबिक ग्रामें अयो, मुनि मासोपवासी हो ॥ दान निदान val सुखनुं दीयु, धरी चित्त नल्हासी हो ॥ कण् ॥१॥ तेहतणा सुप्रन्नावथी, तुं नृप कुल आव्यो हो।
तेजस्वी सखीयो अयो, नत्तम फल पायो होकण॥१५॥ न्याय वृत्ति लक्ष्मी लही, सत्पात्रय जोमी हो॥पुण्यानुबंधी पुण्यश्री, पामी सुख कोमी हो॥क॥१६॥शेषकर्म गुरुषथी, मूर्ग तुज आवी हो| sal
देह व्यथोदय ए अयो, नोगवीयें कमाइ दो॥क ॥१७॥ मुनिवंदनथी ते हवे, सुद् कर्म खपाव्यां Sal Salहो ॥ पुण्योदयथी ताहरा, सुख सन्मुख आव्यां हो ॥ कण् ॥१७॥ष न धरीये केहसु, गुण देखी Salलीजें हो ॥ वली विशेष साधुसुं, किम ष धरीजें हो ॥ कण् ॥ १५ ॥ एहवी गुरुवाणी सुणी, Sal
नृपसुत प्रतिबुशे हो ॥ जातिस्मरण पामीयो, निरोगी शुशे हो ॥२०॥ मंत्रौषध व्याधीनणी,
करीये व्यवहार हो ॥ पण थाये कर्मदयथी, दायिक रोग करार हो ॥ कण ॥ २१ ॥ दान दया Iriतप जिनतणी, पूजा विधियें कीधी हो ॥ उष्टकर्मनो क्षय होवे, गुरुवंदन कीधी हो।कणाश्॥जिमू-|॥॥
तकेतु संवेगीयो, निजहाथे की, हो ॥ लुंचन चारित्र नजलु, गुरुपासे लीधुं हो ॥ क० ॥२३॥ NIदुक्कर तप कीरिया करे, सदगुरुनी पासेहो ॥ नवसायर नतारवा, तरणी जिमनासे हो ॥ कण
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