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स ॥ १० ॥ हरिविक्रम राजातणी, आण न धारी माथे रे ॥ कटक लेश नृप चालियो,
युद्ध करण ते सा रे ॥ स० ॥ ११ ॥ खबर करावी तेहने, होजे तु दुशियारो रे Slu हरिविक्रम ई आवियो, करवा युद्ध करारो रे ॥स ॥ १२ ॥ के माने माहरी आगन्या, valके करे मुजसुं युहरे ॥ एहवां वचन सुणी करी, यमनीपरें श्रयो क्रोध रे ॥ स० ॥ निज लशकर
मेली करी, देश नगारुं चमियोरे॥ हरिविक्रम राजानसूं, आजी सामो अमियो रे ॥ स ॥१४॥
कटक बन्ने राजातणां, मांदोमांहि आफलियां रे ॥ शुर लमे सामे पगे, कायर घरमां वलिया रेस INR५॥ नाल गोला सहुदिश चले, धनुषथी बाण वळूटे रे ॥ विचे बरउ तिरी वहे, बखतर कमिया al Vफूटे रे ॥१६॥ तीखी तरवारो तणां, घाय सहे रायजादारे ॥ लमे पमे के आथमे, सहू नृपनें सादा
रे ॥ स ॥ १७ ॥ वारे हरिविक्रम तणी, यह धनंजय आव्यो रे ॥ तेह लडे यक्षराजसुं, सुरबल तास दिखायो रे ॥ स० ॥ १७ ॥ देवतणी संगते करी, नागो नृप जमराजो रे ॥ हरिविक्रमनो जय अयो, पुण्ये वाधे लाजो रे ॥ स ॥ १॥ ॥ मोढुं ढांकी नासी गयो, लीधो तेहनो देशो रे ॥ आण मनावी आपणी, जनपदमांहि नरेशो रे ॥ स ॥२०॥ जैन शैव शासन तिहां, न्यायोज्वल SI नृप थाप्योरे॥धर्म प्रवर्ताव्यो धरा.कंद अधर्मनो काप्योरे॥स ॥१॥हरिविक्रम घरे या जीत निशाण वजामी रे॥ साहाज्यकारी देवता, तास पुण्याश् जामी रे ॥ स ॥ २२ ॥ स्थिरता Sal जिनशासनविषे, प्रमुखगुणें करि पाले रे ॥ समकित निश्चल निर्मलु, दूषण पांचे टालेरे ॥ स I॥ २३ ॥ महाराज पदवी लही, हरिविक्रम नूपालो रे ॥ कहे जीनहर्ष पूरी थर, इण अधिकारे ढालो रे ॥ स ॥ ३१ ॥ सर्वगाथा ॥ १६ ॥
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