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॥ ढाल मी॥ | वणकारा लाल चलण न देशुं ॥ एदेशी ॥
स्थान केवल ज्ञानी गुरुजी संयम आपो, कर्म कग्निकरां बंधन कापो, लाल के नवसिंधु माहे प्रव॥ Isalहण पाम्यो ॥ पुण्यसंयोगें में चरणे शिर नाम्यो ॥ लाल के ॥ १ ॥ संयम आपो |
मुजने शिष्य करि थापो लाल ॥ के नृप हरिविक्रम लाल संयम लीधुं, सिंहतणी परे ।
नत्तम कारज की, लाल ॥ के० ॥ सुमति गुप्ति लाल रुडिपेरे पाले, पंचमहाव्रतकेरां दूषण टाले Salलाल ॥ के ॥ ॥ जयणासुं बोले लाल जयणासुं चाले । मुनिवर शुढे मार्गे महाले ॥ लाल sal NEIT के ॥ विनय वैयावच लाल करे गुरुनी सदा ॥ सदु मुनिवरमां जेणे सोहे नपा लालके॥३॥
आलस मुकी लाल विद्या अभ्यासे, मुनि हरिविक्रम ज्ञानी निजगुरुपासे ॥ लाल ॥ के॥ अनुक्रमें
हादश लाल अंग अधीता, ज्ञानसहित करे किरिया विदिता लाल ॥ के ॥ ४ ॥ एकदिन देशनामे Sal Salनिजगुरु नाष्यो, वीश स्थानक तप अधिक प्रकाश्यो लाल ॥ के ॥ विधिसुं आराध्युं लाल बहु
दुख कापे, परनवे त्रिनुवन पतिनी पदवी समापे लाल ॥ के ॥ ५ ॥ तेमांहे नवमुं लाल श्रानक salजाण्यु, सर्व संपदनुं कारण निश्चे वखाएयूं लाल ॥ के ॥ त्रिकरण शुई लाल समकित धरिये ॥
नमो दंसस्स एहनुं समरण करिये लाल ॥ के० ॥ ६ ॥ सांजली नवमुं लाल स्थानक धरिये,
सर्वज्ञ नक्ति संघाते आदरिये लाल ॥ के० ॥ सदा निशंकित लाल आठ आचारें, शुद परिणाम Salपाले सुगुण विचारें लाल ॥ के ॥ ७ ॥ हरि विक्रम लालऋषि गुणलीणा, सर्वत्र नचित कृत्य प्रवी-II Kalyा लाल ॥के॥ निश्चल मनसूं लाल समकित पाले, मेरुतणी पेरे अमग न चाले लाल ॥ के G
Vा॥६॥ अन्यदिवस लाल श्रीपुर गुरू आव्या, नव्य प्राणिना मनमें अधिक सुहाया लाल।।केणानरतत्राधिप देवसुदृष्टि, हररव्यो देखी मुनिनी करणी नत्कृष्टि लाल कणाणा समकित थिरता लाल गुण अव
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