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नोगवे बहु पुण्यसंयोगा ॥ प्रत्यक्ष देखो तमे लोगारे ॥ गुण ॥ ५॥ बहुदिन ससराघर वसियो, पंचेंbala सुखनो रसियो।निजघर जावा नलसियोरे।गुणा॥ पूरे नीज नवली नारी, नीज नगर नणी तिणीवारी ॥ चाल्यो धरी प्रेम अपारी रे ॥ गुण ॥ ७॥ दीधो मिश्रित कूरकरीने, दी एक पात्र नरीने ॥ पंथें संबल प्रीत धरीने रे ॥ गुण ॥ ७ ॥ एकाकी तिहांथी चलियो, वाटे एक तापस मलियो॥ अरधो ओदन तस दियो रे ॥ गुण ॥ ए॥ अन्नदान ए सहुने दीजें, शुन्न पात्रं विलंब न कीजें ॥ वित्त अनुसारें फल लीजें रे॥ गुण ॥ १० ॥ अन्नदान सहुमें मोटो, अन्नदाने न आवे तोटो, ए वचन म जाणशो खोटोरे ॥ गुण ॥ ११॥ मणि कंचन रयण घणांश, घोमा हाथीनी दाइ, सहु दानमें अन्न वमा रे ॥ गुण ॥ १२॥ ए हतनर दुःखित जाणी, अनुकंपा मनमें आणी, नक्तं शक्तं दीयो प्राणी रे॥ गुण ॥१३ ॥ देने नोजन कीजें, सुकृत नंडार नरीजें, नत्तम लक्षण जाणीजें रे ॥ गुण ॥ १४ ॥ एक सरोवर देखी वारु, बेठो शीरामणसारु, मन चिंते एम विचारु रे ॥ गुण ॥ १५ ॥ वली अतिथि आवे जो कोइ, मुज संन्नागी ते हो, परहो रह्यो जो रे ॥ गुण ॥ १६ ॥ तटेले ते तापस आयो, बकरो थइ के थायो, ते देखी अचरज पायो, रे ॥ गुण || १७ ॥ मनमांहिं शेठ विचारे, नवि थाये कोय संसारे, नर फीटी पशुय किवारे रे॥ गुण ॥१७॥ स्त्रीचरित्र सही ए दीसे, वातमली वीसवा वीसे, देखी ते मन किम हीसेरे, || गुण ॥ १५ ॥ ए नारी जग धूतारी, ए नारी दुर्गति बारी, ए नारी अवगुण गारी रे ॥ गुण ॥ ३० ॥ ए अथिर नारीनो नेहो, तृण नपरें लेपो जेहो, जिम आसु केरो मेहो रे ॥ गुण ॥ १॥ यतः ॥ गहचरिय, रविचरीय ताराचरियन चराचर चरिय ॥ जाणंति बुद्धिमंता, महिलाचरियं न जाणंती ॥१॥ मछपयं जलपंथे, आकाशे
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