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श्रीश
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ज० ॥ शास्त्र कला जाणे सहु, रूपें रति अभिराम रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ यौवनवय प्रापूति थइ, नरमन | मोहन वेलि रे ॥ ज० ॥ शशिवदनी मृगलोयणी, चाले गजगति गेलि रे ॥ ज० ॥ १० ॥ वीरन गुण सांगली, शेव सागरदत्त साह रे ॥ ज० ॥ प्रियदर्शना कन्या तो, मेल्यो तेहशुं विवाह रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ तात आदेश ले करी, लेइ जान विशाल रे ॥ ज० ॥ परणी जर प्रियदर्शना, प्रियदर्शना गुणमाल रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ पंच विषय सुख भोगवे, प्यारी नारी संग रे ॥ ज० ॥ मधुकर लीणो मालती, तिम लीलो सर्वांग रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ कहे वीरन चलुं हवे, शेव कहे चित्तलाइ रे ॥ ज० ॥ वाब्दी अमनें दीकरी, विरह न खमाणो जाय रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ एक पलक पण एहनें, दीगविण न रहाय रे ॥ न तुमनें पण नवि मोकलुं, यो निज जान चलाय रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ जान चलावी आपणी, पोतें रह्यो तिले गम रे ॥ ज० ॥ सासरीयो सरगा पुरी, तेही पण अभिराम रे ॥ भ० ॥ १६ ॥ एक दिवस मन चिंतवे, वीरभद्र गुणवंत रे ज० ॥ ससराना घरमा रह्यां, लाज लक्षण सहु जंत रे ॥ ज० ॥ १७ ॥ स्त्री पीयर नर सासरें, रहेतां शोना जाय रे ॥ ज० ॥ इहां न रहेवो ते जणी, इम चिंतवी मनमांय रे ॥ ० ॥ १८ ॥ परदेशे जा करी, कला सफल करुं एह रे ॥ ज० ॥ फल पामुं संपदतयां, जिम करसा फल मेह रे ॥ ज० | ॥ १५ ॥ केटलाएक दिन त्यां रही, मीठे वयले ताम रे ॥ ज० ॥ निज नारीनं इम कहे, तुं मुज | सुखनुं गम ॥ ० ॥ २१ ॥ जीव वदे नहीं मूकतां, तुजनें वाहाली नार रे ॥ ज० ॥ पण परदेशें जाइशुं, इहां न रहुं निरधार रे ॥ ज० ॥ २२ ॥ समजावी निज कामिनी, अनुमति लेइ तास ||रे ॥ भ० ॥ पुण्यपरीक्षा कारणे, चाल्यो जिनहरष उल्लास रे ॥ ज० ॥ २३ ॥
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स्थान
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