Book Title: Vishvarachna Prabandh
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 14
________________ “विश्वरचना प्रबंध" ग्रंथ है, आपने जो परिश्रम किया उसके लिए में आपको बधाइ देना हूं. प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानोंने भूगोल और खगोलके संबंधमें जितनी खोजें की है उन सबके आधार पर इन विषयोंसे संबंध रखनेवाली जैनधर्मकी मान्यतोको प्रमाणित करनेका आपने जो प्रयत्न किया है वह अभिनन्दनीय और स्तुत्य है। यह प्रयत्न अनेक अंशोमें सफल हुआ है। स्कूल में सीखी हुई और मनमें जमी हुई :भूगोलसे संबंध रखनेवाली बातोंको आपका ग्रंथ एक वार हिला देता है, अपनी तरफ खींचता है, अपनी मान्यताको माननेके खयाल पैदा करता है, और विचारकोंको विचार कर. नेका एक नया ही मार्ग दिखाता है।। जैनधर्मके सिद्धांतोको फैलाने और लोगोंके दिलोंमें जमानेके लिए ऐसे प्रयत्नोंकी अत्यंत आवश्यकता है। आपका ग्रंथ उस आवश्यकताका एक अंश पूरा कर रहा है। आशा है भविष्यमें आप इसी तरहके प्रयत्नों द्वारा जैनधर्मकी सेवा करेंगे, और अन्यान्य मुनि महाराज भीजिन्हें सचमुचही वर्तमानके समुदायको जैनधर्मके सिद्धांत सिखानेकी अन्तरंग अभिलाषा है-आपका अनुकरण करेंगे, एवं गहन अध्ययन और खोजके द्वारा जैनधर्मके सिद्धांतोका इस तरह प्रतिपादन करेंगे कि तर्ककी कसोटी पर कसकर हरेक बातको माननेवाला भी, उनकी-जैनसिदान्तोंकी सच्चाईके कायल हो जाय. - सेवक- : कृष्णलाल वर्मा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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