Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
View full book text ________________ विशेषाव० निर्गमे कल करा: 44 // | त्यत आह-तद्वियोगे-रूपक्रोधादिपर्यायनिवृत्ताविति, एष एव निर्गमस्य निक्षेपः पोदा मवतीति गाथार्थः // 1550 // अयं चानेक- कोट्याचार्य धोक्तः शिष्यव्युत्पादनार्थ, अन्यथा प्रशस्तभावनिर्गममात्रेणाप्रशस्तभाशपगममात्रेण च प्रकृतं, शेषश्च तदङ्गत्वादिति, आह च-तत्थे वृत्ती 13 त्यादि // 51 // एत्थ उइत्यादि गतार्था // 52 // नवरं कस्येत्यत आह-'जीवस्य जीवद्रव्यस्य / इह च-'वीरों'इत्यादि भावार्थगाथा // 442 // | स्पष्टार्था // 53 // किमुक्तं भवतीत्याह-'सामइय'मित्यादि स्पष्टा // 54 // 'इच्चेवमादी'ति इत्येवमादि द्रव्याधीनं यतोऽतो जिनस्यैव |निर्गममभिधाय सामायिकस्य वक्ष्य इति गाथार्थः // 1555 / / कथमित्यत आह-'मिच्छतादी'त्यादि स्पष्टं, विशेषपक्षश्चायमिति न पौनरुक्तयस्य गन्धोऽप्यस्तीति // 1556 // | पंथं किर देसेत्ता साहणं अडविविप्पणट्ठाणं / सम्मत्त पढमलंभो बोद्धव्वो वद्धमाणस्स ।१५५७।नि.१४६। | | 'पंथमित्यादि / एवं तस्यां मध्यमायां पापायां सोमिलायब्राह्मणस्यैकादशचतुर्दशविद्यास्थानविदुपाध्यायऋत्विगुपदेशपूर्वकं यागं यजतः सत उत्तरस्यां दिशि भगवतो महावीरवर्द्धमानखामिनः // 1557 // अवरविदेहे गामस्स चिंतओ रायदारुवणगमणं / साहू भिक्खनिमित्तं सत्था हीणे तहिं पासे // 1558 // दाणऽण्ण पंथनयणं अणुकंप गुरूण कहण संमत्तं / सोहम्मे उववण्णो पलियाउ सुरोतओमरिई॥१५५९॥ लद्धृण य सम्मत्तं अणुकंपाए उ सो सुविहियाणं / भासुरवरबोंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ // 1560 // चइऊण देवलोगाओ इह चेव य भारहंमि वासंमि। इक्खागकुले जाओ उसभसुअसुओ मरीइत्ति॥१५६१॥ इक्खागकुले जाओ इक्खागकुलस्स होइ उप्पत्ती / कुलगरवंसाईए भरहस्स सुओ मरिइत्ति // 1562 // SARASWAROLICE
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