Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
View full book text ________________ विशेषाव० कोट्याचार्य श्रीऋषभदेवक्तव्यता वृत्ती // 453 // // 453 // इच्चेवमाइ सव्वं जिणाण पढमाणुओगतो णेयं / थाणासुण्णत्थं पुण भणियं पययं अतो वोच्छं // 1703|| उसभजिणसमुत्थाणं उत्थाणं जं तओ मिरीइस्स / सामाइयस्स एसोज पुव्वं निग (मोऽहिगओ)॥१७०४॥ (संबोहण निक्खमणं नागिंदो) विज्जदाणवेयड्डे / उत्तरदाहिणसेढी सट्ठीपण्णासनगराई // 1705 // चेत्तबहुलट्ठमीए चउहिं सहस्सेहिं सो उ अवरण्हे / सीया सुदंसणाए सिद्धत्थवणंमि छद्वेण // 1706 / / चउरो साहस्सीओ लोयं काऊण अप्पणा चेव / जं एस जया काहिई (तं तह अम्हेवि) काहामो // 1707 // ___ उसभो वरवसभगई घेतूण अभिग्गहं परमघोरं / वोसट्ठचत्तदेहो विहरइ गामाणुगामं तु // 1708 // णवि ताव जणो जाणइ का भिक्खा केरिसा व भिक्खयरा ? / ते भिक्खमलभमाणा वणमज्झे तावसा जाया॥ भगवंपदीणमणसो संवच्छरमणसिओ विहरमाणो / कनाहिं निमंतिज्जइ वत्थाभरणासणेहिं च // 1710 // संवच्छरेण भिक्खा लद्धा उसमेण लोगनाहेण / ततिए (सेसेहिं बीय) दिवसे लद्धा उ (पढमभिक्खा उ)॥१७११॥ उसभस्स उ खोयरसो पारणए आसि लोगनाहस्स / सेसाणं परमण्णं अमयरसरसोवमं आसि // 1712 // घुटुं च अहोदाणं दिव्वाणि य आहयाई तुराई / देवा य सन्निवतिया वसुहारा चेव वुट्ठा य // 1713 // / गयपुरसेज्जंसो खोयरसदाणवसुहारपेढगुरुपूया / तक्खसिलायलगमणं बाहुबलि निवेयणं चेव // 1714 // कल्लं (सव्विड्डीए पूए) मह दहु धम्मचक्कं तु / विहरइ सहस्समेगं छउमत्थो भारहे वासे // 1715 // बहली अडंबइल्ला जोणगविसओ सुवण्णभूमी य / आहिंडिया भगवया उसमेण तवं चरंतेण // 1716 // OROLAGAIBAOCCACADA
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