Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha

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Page 459
________________ मरीचिः विशेषाव. कोव्याचार्य वृत्ती // 455 // // 455 // पढम दिट्ठीजुद्धं वायाजुद्धं तहेव बाहाहिं / मुट्ठीहि य दंडेहि य सव्वत्थवि जिब्बई भरहो // 1731 // सो एव जिब्वमाणो बिहुरो अह नरवई विचिंतेइ।किं मण्णे एस चक्की?जह दाइं दुब्बला उ अहं॥१७३२॥ संवच्छरेण धूयं अमूढलक्खो उपेसए अरहा / हत्थीओ उत्तरत्तिय वुत्ते चिंता पए नाणं // 1733 // उप्पण्णनाणरयणो (तिनपइण्णोजिण) स्स पामूलं / केवलिपरिसं गंतुं तित्थं नमिऊण आसीणो॥१७३४॥ काऊण एगछत्तं भरहोविय भुंजती विउलभोए। मिरियीवि सामिपासे विहरइ तवसंजमसमग्गो॥१७३५॥ सामाइयमादीयं एक्कारसमाउ जाव अंगाउ। उज्जुत्तो भत्तिगओ (अहिज्जिया) सोगुरुसगासे॥१७३६॥ अह अण्णया मिरीयी गिम्हे उण्हेण परिगयसरीरो। अण्हाणएण चतिओ इमं कुलिंगं विचिंतेति // 1737 // मेरुगिरीसमभारे ण हुमि समत्थो मुहुत्तमवि वोढुं / समणगुणे गुणरहिओ अहगं संसारमणुकंरखी॥१७३८॥ एवमणुचिंतयंतस्स तस्स नियगा मती समुप्पण्णा। लद्धो मए उवाओ जाया मे सासया बुद्धी // 1739 // समणा तिदंडविरया भगवंतो निहुयसंकुचियगत्ता। अजितिंदियदंडस्सउ होउ तिदंड ममं चिंधं // 1740 // लोइंदियमुडासंजया य अहयं खुरेण ससिहो उ।थूलगपाणवहाओ वेरमणं मे सया होउ // 1741 // निक्किचणा य समणा अकिंचणा मज्झ किंचणं होउ।सीलसुगंधा समणा अहयं सीलेण दुग्गंधो॥१७४२॥ ववगयमोहा समणा मोहच्छन्नस्स छत्तयं होउ। अणुवाहणा य समणा मझ च (उवाहणा होंतु)॥१७४३॥ सुक्कंबराय समणा निरंपरा मज्झ धाउरत्ताई। होंतु यमे वत्थाई अरिहो मि कसायकलुसमई // 1745 //

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