Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
View full book text ________________ विशेषाव कोट्याचार्य वृत्ती श्रीवीरवि. सुभवः // 466 // // 466 // AMAKARS ___ एए देवनिकाया भगवं बोहेति जिणवरिंदं तु / सव्वजगजीवहियं भगवं तित्थंगरत्तंति // 1885 // एवं अभिथुव्वंतो बुद्धो (बुद्धारविंदसरिसमुहो)। (लोगंतियदेवेहिं) कुंडग्गामे महावीरो // 1886 // मणपरिणामो य कओ अभिनिक्खणंमि जिणवरिंदेण। (देवीहिय देवेहि यसमंतओ उच्छुयं गयणं)॥१८८७।। भवणवइवाणमंतरजोइसवासी विमाणवासीय / घरणितले गगणतले विज्जुज्जोओ को खिप्पं // 1888 // जावय कुंडग्गागोजाव य देवाण भवणआवासा। देवेहि य देवीहि य अविरहियं संच(रंतेहिं) // 1889 // (चन्दप्पभा य सीआ उवणीया जम्ममरणमुक्कस्स)। आसत्तमल्लदामा (जलथलय)दिव्वकुसुमेहिं // 1890 // पन्नासह आ(यामा) गृणं वित्थिण्णपण्णवीसंतु। छत्तीसइमुग्विद्धा सीया चंदप्पभा भणिया॥१८९१।। सीयाय मज्झयारे दिव्वं मणिकणगरयणचेंचइयं / सीहासणं महरिहं सपायपीढं जिणवरस्स // 1892 // आलइयमल्लदामो भासुरबोंदी पलंबवणमालो / सेययवत्थणियत्यो जस्स य मोल्लं सयसहस्सं // 1893 // छट्टेणं भत्तेणं अज्झवसाणेण सोहणेण जिणो / लेसाहिं विसुज्झतो आरुहई उत्तमं सीयं // 1894 // सीहासणे निसन्नोसक्कीसाणा य दोहिं पासेहिं / वीएति चामरेहिं मणिकणग(विचित्तदंडेहिं)॥१८९५॥ पुब्वि उक्खित्ता माणुसेहिं साहटु रोमकूवेहिं / पच्छा वहंति सीयं असुरिंदसुरिंदनागिंदा // 1896 / / चलचवलभूसणधरा सच्छंदविउब्वियाभरणधारी। देविंददाणविंदा वहति सीयं जिणिंदस्स // 1897 / / कुसुमाणि पंचवण्णाणि मुयंता दुंदुही य ताडता। देवगणा य पहट्ठा समंतओ उच्छुयं गयणं // 1898 //
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