Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
View full book text ________________ विशेषाव० कोट्याचार्य वृत्ती // 467 // ANORAMACROSASARAN पुरओ वहंति देवापिच्छा नागा पुण दाहिणमि पासंमि। पञ्चच्छिमेण असुरागरुला पुण उत्तरे पासे // 1899 // * श्रीवीरविकुसुमाणि पंच(वण्णाणि मुयंता) दंभीउ वाएंता / देवगणा य पसण्णा समंतओ उत्तरंति नभे // 1900 // भुभवः (वणसंडोव्व कुसुमिओ) पउमसरोव्व जहा सरयकाले। (सोहइ)कुमुमभरेणं इय गयणयलं सुरगणेहिं // 1901 // (सिद्धत्थ)वणं व जहा असणवणं (सणवणं) असोगवणं / चूयवणं व कुसुमियं इय गयणयलं सुरगणेहिं // 1902 // // 467 // अयसिवणं व कुसुमियं कणियारवणं व चंपयवणंवा। तिलगवणं व कुसुमियं इय गयणयलं सुरगणेहिं // 1903 // (वरपडहभेरिझल्लरिदुंदुहिसंख)सहिएहिं तुरेहिं / धरणियले गयणयले तुरियनिनाओ परमरम्मो // 1904 // एवं सदेवमणुयासुराऍ परिसाएँ परिवुडो भयवं / अभिथुब्वंतो गिराहिं संपत्तो नायसंडवणं // 1905 // उज्जाणं संपत्तो ओरभिया उत्तमाओ सीयाओ। सयमेव कुणइ लोयं सक्को सि पडिच्छए केसे // 1906 // जिणवरमणुण्णवित्ता अंजणघणभुयगविमलसंकासा / केसा वणेण नीया वीरसरिनामयं उदहिं // 1907 // दिव्यो मणुस्सघोसो तुरियनिनाओ व सक्कवयणेणं / खिप्पामेव निलुको जाहे पडिवजति चरित्तं // 1908 // काऊण नमोकारं सिद्धाण अभिग्गहं तु सो गेण्हे / सव्वं मे अकरणिज्न पावंति चरित्तमारूढो // 1909 // तिहिं नाणेहिं समग्गा तित्थगरा जाव होंति गिहवासे / पडिवण्णंभि चरित्ते चउनाणी जाव छउमत्था / / 1910 // पणी(ब)हिया य नायसंडे आपुच्छित्ताण नायए सव्वे। दिवसे मुहुत्तमेगं कम्मारग्गाममणुप्पत्तो // 1911 // गोवनिमित्तं सबस्स आगमो वागरेइहेति (दविंदो)।(कोल्लाबहुले छट्ठस्स) पारणए पयस वसुहारा // 1912 // *RECRUAR
Loading... Page Navigation 1 ... 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504