Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
View full book text ________________ विशेषाव० कोव्याचार्य है वृत्ती मरीच्यादिवक्तव्यता // 454 // // 454|| पहली य जोणगा पोहगा य जे भगवया समणुसहा / अने य मेच्छजाई ते तइया मद्दया जाया // 1717 // तित्थगराणं पढमा उसभसिरी विहरिओ निरुवसग्गं / अट्ठावओ नगवरो अग्गभूमी जा जिणिंदस्स // 1718 // छउमत्थप्परियाओ वाससहस्सं तओ पुरिमताले / नग्गोहस्स य हेट्ठा उप्पण्णं केवलं नाणं // 1719 // फग्गुणबहुलेकारसीए अह अट्ठमेण पुव्वण्हे / उप्पण्णंभि अणंते महव्वया पंच पन्नवए // 1720 // उप्पणमि अणंते नाणे जरमरणविप्पमुक्कस्स।तो देवदाणविंदा करेंति महिम जिणिंदस्स॥१७२१॥ उज्जाणपुरिमताले पुरीविणीयाएँ तत्थ नाणवरं / चक्कुप्पया य भरहे निवेयणं चेव दोण्हंपि // 1722 // .. (तायं) मि पूतिये चक्क पूतिय (पूय) णारिहो ताओ। इहलोइयं तु चक्कं परलोगसुहावहो ताओ // 1723 // सहमरुदेवीऍ निग्गओ कहण पव्वज्ज उसभसेणस्स। बंभी मिरीइदिक्वा (सुंदरि ओरोह सुअदिक्खा)॥१७२४॥ (पंच य पुत्तसयाइं भरहस्स य सत्त नत्तुयसयाइं)। सयराहं पव्वतिया तंमि कुमारा समोसरणे // 1725 // भवणवति वाणमंतर जोइसवासी विमाणवासीय।सब्बिड्डीए सपरिसा करेंति नाणुप्पयामहिम॥१७२६॥ दहण कीरमाणी महिमं देवेहिं वत्तिओ मिरीई। संमत्तलद्धबुद्धी धम्म सोऊण पब्वइओ॥१७२७।। सामाइयमाईयं एक्कारसमाउ जाव अंगाउ। उज्जुत्तो भत्तिगओ अहिज्जिओ सो गुरुसगासि // 1728 // मागहमादी विजओ सुंदरिपव्वज्ज वारसभिसेओ। आणवण भाउयाणं समुसरणे पुच्छ दिलुतो॥१७२९॥ बाहुबलिकोवकरणं निवेयणं चक्कि देवयाकहणं / णाधम्मेणं जुज्झे दिक्खा पडिमा पइण्णा य // 1730 // CARROR ANIK
Loading... Page Navigation 1 ... 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504