Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha

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Page 466
________________ विशेषाव कोट्याचार्य वृत्ती श्रीवीरविभुभवः 8454545S // 462 // // 462 // एएसु दंसणाइसु निरईयारोत्ति जो निरवराहो / संवेगमावणाओ (शाणासेवण समाही य)॥१८३०॥ (जहस)त्तीय तवो(असणुवहिसेजाइ) जइजणे विहिणा / वेयावच्चं दसविहजणोवकाराय वावारो॥१८३१॥ गुरुकजसाहणाओ संघादी सत्थया समाहिति / अप्पुव्वसुयग्गहणं पयत्तओ नाणभत्ती य // 1832 // मग्गस्स जहासत्ती (पभावणा देसणाइरूवा जा / एएहिं जिणणामं अज्जेइ वि) सुद्धपरिणामो // 1833 // तं च कहं वेतिज्जइ ? अगिलाए धम्मदेसणादीहिं। बज्झइ तं तु भगवओ ततियभवो सक्कइत्ताणं // 1834 // तट्ठितिमोसकेउं ततियभवो जाव अहव संसारं / तित्थगरभवाओ वा ओसक्केउं भवेततिए॥१७३५।। जं बज्झइत्ति भणिय तत्थ निकाइजइत्ति नियमोऽयं / तदवंझफलं नियमा भयणा अणिकाइयावत्थे // 1836 // आरम्भवन्धसमया(सय) य उवचिणइ जाव अप्पुवी। संखेज्जे भागेतू केवलिकालम्मि उदओ से // 1837 / / नियमा मणुयगतीए इत्थी पुरिसेतरोव्व सुहलेसो। आसेवियबहुलेहिं वीसाए अण्णयरएहिं // 1838 // माहणकुण्डग्गामे कोडालसगोत्त माहणो अस्थि / तस्स घरे उववण्णो देवानन्दाए कुच्छिसि // 1839 // सुविणमवहारभिग्गहजम्मणअभिसेयवडिसरणं च / भीसणविवाहबच्चे दाणे संबोहनिमखमणे // 1840 // गयवसहसीहअभिसेयदामससिदिणयरज्झयं कुम्भं। पउमसरसागरविमाणभवणरयणुच्चयसिहिं च॥१८४१॥ एए चउदस सुमिणे पासति सा माहणी सुहपसुत्ता। जरयणि उववन्नो कुच्छिसि महायसो वीरो॥१८४२॥ एगं विमाणभवणं तो चउदस होति तं च कहमेगं ? / जं भणियं वेमाणियदेवावासोन सेसंति // 1843 / / RAKASARAN XSROL

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