Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
View full book text ________________ विशेषाव कोट्याचार्य वृत्तौ | निर्गमे श्रीऋषभदेववक्तव्यता // 446 // // 446 // SAHARSHASHANK देसूणगं च वासं सक्कागमणंच वंसठवणट्ठा / जंच जहा जिणजोग्गं सव्वं तं तस्स कासीय // 1605 // सक्को वंसट्ठवणे इक्खु अगू तेण होंति इक्स्वागा। आहारमंगुलीए विहति देवा मणुण्णं तु // 1606 // (अह वड्डइ सो भयव) भगवन्तो दिवलोगचुओ अणोवमसिरीओ। देवगणसंपरि९डोणंदाएँ सुमंगलासहिआ।१६०७ __ असियसिरओ सुनयणो बिंबोट्ठो धवलदंतपंतीओ। वरपउमगम्भगोरो फुल्लुप्पलगंधनीसासो॥१६०८॥ जाईसरो य भगवं अप्परिवडिएहिं तिहि उ नाणेहिं / कंतीय य बुद्धीय य अन्भहिओ तेहिं मणुएहिं॥१६०९।। पढमो अकालमच्चू तहिं तालफलेण दारओतु हओ। कण्णा य कुलगरेणं सिटे गहिया उसभपत्ती // 1610 // भोगसमत्थं नाउं वरकम्मं तस्स कासि देविंदो। दोण्हं वरमहिलाणं वहुकम्मं कासि देवी उ // 1611 // छप्पुव्वसयसहस्सा पुटिव (जायस्स जिणवरिंदस्स)तो भरहवं (भिसुंदरि बाहुबली चेव जा) याइं // 1612 // देवीसुमंगलाए भरहो बंभी य मिहुणयं जायं / देवीय सुनंदाए बाहुबली सुंदरी चेव // 1613 // -अउणापन्नं जुयले पुत्ताण सुमंगला पुणो पसवे / णीतीण अतिक्कमणे निवेयणं उसभसामिस्स // 1614 // राया करेह दंड सिटे तेति अम्हवि स होउ / मग्गह य कुलगरं मो य बेति उसभोय (भे राया)॥१६१५॥ (आभो) एउं सक्को उवागओ (तस्स कुणइ अभि)सेयं मउडाइअलंकारं नरिंदजोग्गं च से कुणइ // 1616 // भिसिणीपत्तेहितरे उदयं घेत्तुं छुभंति पाएसु। साहु विणीया पुरिसा विणीयनगरी अह निविट्ठा॥१६१७॥ आसा हत्थी गावो गहियाई रजसंगहनिमित्तं / घेतूण एवमादी चउब्विहं संगहं कुणइ // 1618 // AURA
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