Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha

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Page 449
________________ विशेषाव कोव्याचार्य निर्गमे श्री. ऋषभदेववक्तव्यता // 445 // HISTOLOCAUSTU // 445 // ASSROSSASAR पढमेत्थ वइरनाभो बाहुसुबाहू य पीढमहपीढे। तेसि पिया तित्थगरो मिक्खंता तेवि तत्थेव // 1591 / / पढमो चोदसपुवी सेसा इक्कारसंगवी चउरो। बितिओ वेयावच्चं कितिकम्मं ततियओ कासी // 1592 // भोगफलं बाहुबलं पसंसणा जेट्ट इयरअचियत्ता। पढमो तित्थगरत्तं वीसहि ठाणेहिं कासी य॥१५९३॥ अरहंत सिद्ध पवयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीसु। वच्छल्लया य तेसि अभिक्ख णाणोवओगे य॥१५९४॥ दसण विणए आवस्सए यसीलव्वए निरतियारो। खणलवतवच्चियाए वेयावच्चे समाही य // 1595 // अप्पुवणाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पभावणया। एएहिं कारणेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो // 1596 // पढमेण पच्छिमेण य एए सब्वेवि फासिया ठाणा। मज्झिमएहिं जिणेहि एक दो तिन्नि सव्वे वा // 1597 / / नाभी विणीयभूमी मरुदेवा चेव होइ उसभो य / राया य वइरनाभो विमाणसव्वट्ठसिद्धाउ // 1598 // तं च कहं वेइज्जइ ? अगिलाए धम्मदेसणाईहिं / बज्झइ तं तु भगवओ तइयभवोसकइत्ताणं // 1599 // नियमा मणुयगईए इत्थी पुरिसेयरो य सुहलेसो। आसेविय बहुलेहिं वीसाए अण्णयरएहिं // 1600 // उववाओ सबढे सव्वेसिं पढमओ चुओ उसभो। रिक्खेण असाढाहिं असाढबहुले चउत्थीय॥१६०१॥ जम्मणे नाम वड्डी य, जाईस्सरणे इय / वीवाहे य अवच्चे य, अभिसेए रजसंगहे // 1602 / / चेत्तबहुलट्ठमीए जाओ उसभो असाढणक्खत्ते / जम्मणमहो य सव्वो नेयव्यो जाव घोसणयं // 1603 // संवट्ट मेह आयंसगा य भिंगार तालियंटा य / चामर जोई रक्खं करेंति एयं कुमारीओ // 1604 / / OSOS

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