Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 649
________________ न्यायसंग्रह राखे छे पण नीचे पडी जान जशे ते जोतो नथी. ८९. मर्कटमदिरापानादिन्यायः मूळे मांकडु, तेमां दारू पीधो, (अने पछी वींछी करड्यो ) - हवे कूदाकूदमां शी मणा रहे ? ९०. मंडूकप्लुतिन्यायः देडकानो कूदको . बच्चेनो क्रम छोड़ी झट आगळी वात उपर ठेकडो मारवो ते. (सारं न गणाय ) . ९१. मात्स्यन्यायः मोटुं माछलुं नानाने गळे - ए न्याय. बळियाना बे भाग. ९२. यः कुरुते स एव सुंक्तेकरे ते भोगवे. ९३. यत् करभस्य पृष्ठे न माति, तत् कंठे निबध्यते ऊंटनी पीठ उपर न माय तेने तेनी डोके बांधे. दुःखमां दुःख उमेराया ज करे. ९४. याचितकमंडनन्यायः घरेणांथी सारा देखावुं. ९५. यादृशो यक्ष स्तादृशो बलिः जेवो यक्ष तेवा तेने बाकळा. छापना देवने कपासियानी आंखो. मागेलां ९६. वटे यक्षन्यायः वडना झाडमां भूत रहे छे - एवी लोकवायका ज चाल्या करे छे; कोईए नजरे जोयुं होतुं नथी. ९७. वदतोव्याघातः पोतानी ज वातनुं खंडन पोते ज करे तेना जेवुं - जेम के, मारी मा वांझणी छे, मारो बाप ब्रह्मचारी छे इ०. ९८. वध्यधातकन्यायः उंदर ए बिलाडी माटे भक्ष्यरूप छे; तेथी ते बे प्राणीओ साथे न रही शके. ते प्रमाणे जे बे वस्तुओ एक साथे न रही शके ते बताववा आ न्याय वपराय. ९९. वनसिंह - व्याघ्र न्यायः वन सिंहने आधार आपे छे अने सिंहथी वनने रक्षण मळे छे, तेम एकबीजाने टेकारूप बनती वे वस्तुओ बताववा. Jain Education International ६३५ १००. वरमद्य कपोतः श्वो मयूरात् आजनुं ( ध्रुव) कबूतर कालना ( अध्रुव) मोर करतां वधु सारं. १०१. वराटकान्वेषणे प्रवृत्तश्चिन्तार्माण लब्धवान् खोवायली कोडी शोधवा जतां चिंतामणि जडवो. १०२. विक्रीते करिणि किमंकुशे विवाद: हाथी वेची दीधा बाद अंकुश माटे तकरार शा माटे ? १०३. विषकृमिन्यायः विष बीजाओने घातक नीवडे, पण तेमां ज जन्मता अने वधता जंतु माटे तो आधाररूप जथा छे; एक जणनुं झेर ते बीजाने अमृत. १०४. विषवक्षन्यायः झेरी झाड पोते वावीने ऊछैर्यु होय, तो पछी पोताने हाथे शी रीते कापी नंखाय ? १०५. विहंगमन्याय: कीडी धीमी चाले; तेना करतां वांदरुं एक झाडथी बीजा झाड उपर कदी जलदी रस्तो कापे. पण पंखी तो सीधी लीटीमां ऊडी सौथी वहेलुं पहोंचे उत्तम अधिकारीनुं दृष्टांत. १०६. वीचितरंगत्यायः समुद्रमां एक मोजुं बीजा मोजाने आगळ धकेले छे, अने एम छेवटे सौ किनारे पहोंचे छे. १०७. वृक्षप्रकंपनन्यायः झाड उपर चडेलाने नीचे उभेलाओमांथी एक एक डाळी हलाववानुं कहे, बीजो जीने, अने जो त्रीजीने इ० ; पछी पेलो आखुं झाड ज हलावे, तो सौने पोते मागेली डाळी हलावी एम लागे. एक ज प्रयत्ने अनेकने संतुष्ट कराय. १०८. वृद्धकुमारी - वाक्य ( - वर ) न्यायः परण्या वगर रही गयेली कोई प्रौढाने देव वरदान मागवानुं कहे अने ते एम मागे के, 'मारा पुत्रो सोनानी थाळीमां कढेला दूधनी खीर खाय' ; तो तेमां पति, पुत्र, ढोरढांख, सोनं-रूपं बधुं एकसाथ एक वाक्यमां मागी लीधुं तेम. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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