Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 721
________________ सौभाजन ७०७ हृदयाविष सौभांजन पुं० सरगवानुं झाड स्थणानिखननन्यायः जुओ पृ० ६३६ सौराष्ट्र पुं० जुओ पृ० ६२८ स्नाता स्त्री० रजस्वला थईने नाहेली सौवीर पुं० जुओ पृ० ६२८ स्त्री स्थाणव वि० वृक्षोना थडनुं बनतुं; स्पर्शन न० स्पर्शेद्रिय वृक्षोना थडमांथी मळतुं स्यमंतक पुं० जुओ पृ० ६२८ स्थालीपुलाकन्यायः जुओ पृ० ६३६ स्यंदिनी स्त्री० जुओ पृ० ६२८ स्थिरकर्मन् वि० उद्यमी; कर्ममां मच्यु जुन्न पुं० जुओ पृ० ६२८ रहे। स्वरिवामधू स्त्री० अप्सरा हनुमत्, हनूमत् पुं० जुओ पृ० ६२८ हरिद्वार न० जुओ पृ० ६२८ हरिश्चंद्र पुं० जुओ पृ० ६२८ हस्तामलकन्यायः जुओ पृ० ६३६ हुंकार पुं०, हुंकृति स्त्री० 'ह', 'ह' एवो उद्गार(२) धमकी-पडकारनो उद्गार(३)गर्जना (४) धनुष्यनो टंकारव हुंभा स्त्री० ढोरनुं भांभर ते हृदयाविष् वि० हृदय वींधी नाखे तेवू - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 719 720 721 722 723 724