Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 720
________________ सत्यवत् ७०६ सेक सत्यवत् पुं० जुओ पृ०६२७ साधुता स्त्री०, साधुत्व न० सारापणुं; सत्यवती स्त्री० जुओ पृ० ६२७ पवित्रता सत्यव्रत पुं० जुओ पृ० ६२७ साधुमन् ४ आ० सारुं के उत्तम मानवं सत्राजित् पुं० जुओ पृ०६२७ सायण पुं० जुओ पृ० ६२७ सदानीरा स्त्री० जुओ पृ० ६२७ सारस्वत पुं० जुओ प० ६२७ सन, सनक पुं० जुओ पृ० ६२७ साल्व पुं० जुओ पृ० ६२७ . सनत् पुं० ब्रह्मा [एक सावित्री स्त्री० जुओ पृ० ६२७ . सनत्कुमार पुं० ब्रह्माना चार पुत्रोमांना सांदीपनि पुं० जुओ पृ० ६२७ . सनत्सुजात पुं० ब्रह्माना सात मानस सांब पुं० जुओ पृ० ६२८ पुत्रोमांना एक. [भवत्' पृ० १८८ सिकताकूपवत् जुओ पृ० ६३६ सभवत् स० ना०, वि० पुं० जुओ 'तत्र- सिकतातैलन्यायः जुओ पृ० ६३६ समज्ञा स्त्री० कीर्ति सिध्मा स्त्री० कोढनो डाघ; रक्तसमतट पुं० जुओ पृ० ६२७ [करवू पित्तनो डाघ (२) दम-श्वासनो रोग समद् (सम+अद) खाई जवं; भक्षण सिंधु पुं० जुओ पृ० ६२८ । समस्थ वि० सुखी संजोगोमा होय तेवू सिंधुसौवीराः पुं० ब० व० जुओ पृ० समंतपंचक न० जुओ पृ० ६२७ ६२८ सरयू स्त्री० जुओ प० ६२७ सिंहावलोकनन्यायः जुओ पृ० ६३६ सरस्वती स्त्री० जुओ पृ० ६२७ सीता स्त्री० जुओ पृ० ६२८ सर्वस्वार पुं० एक यज्ञ (जेमां असाध्य सीरध्वज पुं० जुओ पृ० ६२८ रोगथी कंटाळेलो यजमान आत्महत्या सुग्रीव पुं० जुओ पृ० ६२८ करे छे) सुडीनक न० पक्षीनी ऊडवानी एक रीत सहदेव पुं० जुओ पृ० ६२७ सुदामन पुं० जुओ पृ० ६२८ सह्य पुं० जुओ पृ० ६२७ । सुनीथ पुं० जुओ पृ० ६२८ संज्ञा स्त्री० जुओ पृ० ६२७ सुबल पुं० जुओ पृ० ६२८ संडीन न० पक्षीनी ऊडवानी एक रीत सुभगंमन्य वि० पोतानी जातने भाग्यसंधि ६ प० संधि करवी शाळी मानतुं संपातिन् पुं० जुओ पृ० ६२७ . सुभगाभिक्षुन्यायः जुओ पृ० ६३६ संपूजन वि० प्रशंसा करतुं; स्तुति करतुं सुभद्रा स्त्री० जुओ पृ० ६२८ संयोगविधि पुं० जीव अने ब्रह्मन ऐक्य सुमनीभू सुखी- निश्चित थर्बु प्रतिपादन करतुं वेदांतदर्शन सुमित्रा स्त्री० जुओ पृ० ६२८ संवांछ् अभिलाषा राखवी; वांछq सुमेरु पुं० जुओ पृ० ६२८ सुरेभ वि० मधुर अवाजवाळं संशब्द १० उ० -ने बोलावq- संबोधq सुवेल पुं० जुओ पृ० ६२८ संसुप्त वि० सूतेलं; ऊंघेलं सुह्माः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६२८ संस्व १ आ० दुःख आपq (मात्र सूचिकटाहन्यायः जुओ पृ० ६३६ 'संस्वरिषीष्ठाः' बीजो पुरुष एक- सूचिन् पुं० जासुस (२) एक प्रकारनुं वचन- रूप जाणमां छे) बाण __ -प्रेरक० पीडवू; कनडवू सूत्रकर्मविशेषज्ञ पुं० वणकर सात्यकि पुं० जुओ पृ० ६२७ सेक पुं० जुओ पृ० ६२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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