Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 718
________________ वातिका ७०४ शतगुणित वातिका स्त्री० समाचार (२) धंधो- विशाला स्त्री० जुओ पृ० ६२३ रोजगार विश्वामित्र पुं० जुओ पृ० ६२३ वालि पुं० जुओ पृ० ६२२ । विषकृमिन्यायः जुओ पृ० ६३५ वाल्मीकि पु० जुओ पृ० ६२२ विषमस्थ वि० आपद्ग्रस्त (२) पहोंची वासवदत्ता स्त्री० जुओ पृ० ६२२ न शकाय तेवं वासुकि पुं० जुओ पृ० ६२२। विषवृक्षन्यायः जुओ पृ० ६३५ वाह्निक, वाह्नीक जुओ पृ० ६२२ विहंगमन्यायः जुओ पृ० ६३५ विक्रीते करिणि किमंकुशे विवादः जुओ विध्याटवी स्त्री० जुओ पृ० ६२३ पृ० ६३५ वोचितरंगन्यायः जुओ पृ० ६३५ विचित्रवीर्य प० जुओ पृ० ६२२ वीणादंड पुं० वीणानो दांडो वितस्ता स्त्री० झेलम नदी सिर्जवं वृक्षप्रकंपनन्यायः जुओ पृ० ६३५ विताय १ आ० फेलावq ; विस्तार; वृक्षाधिरूढ़ पुं० वेली वृक्षने वीटळाय विदर्भ पुं० जुओ पृ० ६२२ ते रीते स्त्रीए करेलुं आलिंगन विदिशा पुं०. जुओ पृ० ६२२ । वृत्र पुं० जुओ प० ६२४ [६३५ विदुर पुं० जुओ पृ० ६२२ वृद्धकुमारी-वाक्य (-वर)न्यायःजुओप० विदेहाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६२३ वृद्धभाव पुं० वृद्धावस्था पृ०६३६ विद्राण वि० जागतुं रहेलं; न ऊंघेलं वृद्धिमिष्टवतो मूलमपि ते नष्टम् जुओ (२) जगाडेलु (४) हताश ; उदास वृषकेतु पुं० जुओ पृ० ६२४ विमिन् वि० अनृत; असत्य (२) वृषपर्वन् पुं० जुओ पृ० ६२४ जुदा प्रकारनुं वृष्णि पुं० जुओ पृ० ६२४ विनता स्त्री० जुओ पृ० ६२३ वेणा, वेणी, वेण्या, घेण्या स्त्री० जुओ विनशन न० जुओ प०६२३ प० ६२४ विपाश, विपाशा स्त्री० जुओ पृ० ६२३ ।। वेदवाद पुं० कर्मकांड (२) वेदनी चर्चा विप्रलू चूंटवं; तोडQ वेन पुं० जुओ पृ० ६२४ विमृश ६ प० स्पर्शवं; हाथ फेरववो वैजयंत न० जुओ पृ० ६२४ (२) विचारवू (३) परीक्षा करवी वैतरणी स्त्री० जुओ पृ० ६२४ विराज पुं० मंदिरनो एक आकार वैवस्वत पुं० जुओ पृ० ६२४ विराट पुं० जुओपृ० ६२३ [लीधेलं वैशंपायन पुं० जुओ पृ० ६२४ विरिक्त वि० मलत्याग करेलु; जुलाब वैशाली स्त्री० जुओ प० ६२४ विरोचन पुं० जुओ पृ० ६२३ व्यतियु २ प० भेळव; मिश्रित करवं विलिंगस्थ वि० नहि समजवान एवं; व्याल-नकुल-न्यायः जुओ पृ० ६३६ न समजाय ते व्यास पुं० जुओ पृ० ६२४ विशाखा स्त्री० जुओ पृ० ६२३ व्रज पुं० जुओ पृ० ६२४ शकटो: स्त्री० सपाट जमीन शकस्थान न० जुओ पृ० ६२४ शकुनि पुं० जुओ पृ० ६२४ शकुर वि० पाळेलं; पलोटेलु शकुंतला स्त्री० जुओ पृ० ६२४ शतगुणित वि० सो गणुं थई गयेलु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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