Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad
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औदक
औदक वि० जळचर; जळवासी औदका स्त्री० पाणीथी वींटळायेली नगरी
औदरिक वि० जेनुं पेट फूली गयुं छे तेवुं औदर्य वि० गर्भाशयनुं ( २ ) गर्भाशयमां
पडेलं (३) पुं० पुत्र औदुंबर वि० उंबराना वृक्षनुं ( २ ) तांबानं (३) न० उंबरानुं फळ -उमरडुं (४) तांबानुं पात्र
औपनीविक वि० नीवि - पेट उपर पहेरेला वस्त्रनी गांठ नजीकनुं; त्यां राखेलुं
औपयिक पुं०, न० उपाय औपवास्य न० उपवास
ककुत्स्थ पुं० जुओ पृ० ६०१ ककुभ पुं० अर्जुन वृक्ष ( २ ) न० कुटज - वृक्षनुं पुष्प
कक्कोली स्त्री० कंकोलनो छोड कच पुं० जुओ पृ० ६०१ कच्छांत पुं० सरोवर के नदीनी किनार उपरनी भेजवाळी जगा
कज्जलित वि० काजळवाळं - काळं करेलुं के थयेलुं
कटपूतना स्त्री० पिशाचीओनो एक प्रकार; एक पिशाच योनि कटभू स्त्री० हाथीनुं गंडस्थल कटांत पुं० गंडस्थलनो छेडानो भाग कटिका स्त्री० केड; कमर कटीरक न० कूलो; ढगरो कटुक न० कडवी वाणी (२) कडवाश (समासने अंते 'खराब' अर्थमां. उदा० दधिकटुकम् - खराब दहीं ) कठकालापाः पुं० ब०व० ( यजुर्वेदती ) कठ अने कालाप शाखाना अनुयायीओ
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६७१
कदर्थीकृत
१०८)
औपसंध्य वि० प्रातःकाळ संबंधी औपस्थितिक पुं० अनुचर; सेवक औपहारिक न० बलि; आहुति; दान औपेंद्र वि० उपेंद्र संबंधी (जुओ पृ० [ कामळो और न० घेटानुं मांस ( २ ) ऊननो औजित्य न० मोटाई; महानता और वि० पृथ्वीतुं धरतीनुं औशीर न० पंखो के चामरनो हाथो (२) पथारी ( ३ ) बेसवानुं आसन (४) उशीर - वीरणवाळानो लेप (५) वीरणवाळो (६) वि० वीरणवाळानं बनावेलुं [ के प्रकाश औषसातप पुं० वहेली सवारनो तडको
क
कठिन न० कोदाळी ( २ ) माटीनी हांडी कठिनता स्त्री० कठोरता; क्रूरता कठोरगर्भ वि० पुख्त गर्भावस्थावाळु कठोरयति प ० ( मंजरीओ के कळीओथी भरी काढवुं; खिलाववुं ) कठोरित वि० व्यायाम परिश्रमथी दृढ़ के मजबूत बनावेलुं
कडंकर, कडंगर पुं० जुदां जुदां कठोळनी asa ( २ ) एक जातनी गदा कणाद पुं० जुओ पृ० ६०१ कण्व पुं० जुओ पृ० ६०१ कथनिक पुं० कथाकार; वार्ताकार कथंवीर्य वि० कया सामर्थ्यवाळु कथानायक, कथापुरुष पुं० वार्तानुं मुख्य पात्र [ विक भाग कथामुख न० वार्ता के कथानो प्रास्ताकथोद्धात पुं० वार्ता के कथानी शुरूआत - प्रारंभ [ तिरस्कारबुं) कदर्थयति प ० ( कनडवुं; क्लेश आपवो; कदर्थीकृत वि० तिरस्कृत
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