Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 683
________________ ऊर्ध्वशोषम् ऊर्ध्वशोषम् अ० उपरनुं सूकवी नाखे तेम ऊर्मिका स्त्री० मोजुं (२) आंगळीए पहेरवानी एक जातनी वींटी (पाणीना तरंगनी जेम चमकती ) ऊर्मिला स्त्री० जुओ पृ० ६०१ ऊषरवृष्टिन्यायः पुं० जुओ पृ० ६३१ ऋक्षवत् जुओ पृ० ६०१ ऋक्षहरीश्वर पुं० सुग्रीव ( रींछो अने वानरोनो राजा ) ऋज्वायत वि० सीधुं - टटार एवं ऋणकर्तृ वि० देवुं करनारं ऋणनिर्मोक्ष पुं० ऋणमांथी मुक्त थवुं ते ( पूर्वजो इ०ना) ऋतुजुष स्त्री० ऋतुकाळे समागम करती स्त्री (जेथी संतान थाय ) ऋतुपर्ण पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋद्धित वि० समृद्ध करेलुं एक न० मन ( २ ) एकम एककुंडलिन् पुं० कुबेर एकचित्त न० एक विषय उपर चित्तनुं एकाग्र थवं ते ( २ ) एकमती एक वि० एकलुं जन्मेलुं (२) एकलुं ऊगेलं (वृक्ष) एकताल वि० एक ज ताडवृक्षवाळं एकपक्ष पुं० एक पक्ष ( २ ) एक दृष्टिबिंदु एकपदे अ० अणधार्यं; ओचितुं एकपिंग, एकपिंगल पुं० कुबेर ( एक आंखने बदले पीळं चाठं, पार्वती उपर कुदृष्टि करवाने लीधे शापथी थयेलुं ) एकपुरुष पुं० परमात्मा; परमपुरुष Jain Education International ६६९ ऋ ए ऊषरायते आ० थबुं - जेथी थई शके) एकसंस्थ (ऊखर जमीन जेवा वासनाओ ऊभी न ऊष्मप वि० गरमागरम अन्ननी वराळ पीतुं ( २ ) पुं० पितृओनो एक वर्ग ऊष्माण न० वराळ ऋद्धिमत् वि० समृद्ध ऋभु पुं० देव (२) देवो जेने पूजे छे ते देव (३) देवोना अनुचरोनो एक वर्ग ( ४ ) रथकार ऋश्य पुं० धोळा पगवाळं हरण ऋषभक पुं० एक पर्वत ( २ ) सांढ ऋषिक पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋष्यमूक पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋष्यवत् पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋष्यशृंग पुं० जुओ पृ० ६०१ एकपुष्कर पुं० एक वाजित्रनुं नाम एकप्रहारिक विo एक ज प्रहारथी मृत्यु पामेलुं एकरथ पुं० प्रखर योद्धो एकरश्मि वि० प्रकाशमान एकरूपता स्त्री० समानता एकलव्य पुं० जुओ पु० ६०१ एकवेणीधरा स्त्री० पतिना वियोगमां केशने सेंथो पाड्या विना एक ज जूडामां बांधी राख्या होय तेवी स्त्री एकशल्य पुं० एक प्रकारनी माछली एकस्थ वि० एक स्थळे केंद्रित थयेलं; एक ज व्यक्तिमा रहेलुं एकसंस्थ वि० एक स्थळे रहेतुं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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