Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 687
________________ कलविशुद्ध ६७३ कामधेनु कलविशुद्ध वि० मधुर अने स्पष्ट कंदल न० ए नामनुं फूल कलविक पुं० एक जातनी चकली (२) कंबलनिर्णेजनन्यायः जुओ पृ० ६३२ डाघ [घटवू ते कंबोजाः पुं० ब० व० जुओ 'कांबोज' कलाक्षय पुं० चंद्रनी कळानुं क्षीण थq- पृ० ६०३ कलाभृत् पुं० चंद्र कंस पुं० जुओ पृ० ६०२ लिंगाः पुं०व०व० एक प्रदेश- नाम कंसकृष् पुं० श्रीकृष्ण (कंसने हणनार) अने तेना लोको; जुओ पृ० ६०२ काकतालीयन्यायः जुओ पृ० ६३२ कलिंदजा स्त्री० यमुना नदी काकवंतगवेषणन्यायः जुओ पृ० ६३२ कलुषमानस वि० दुष्ट मनवाळू; अनिष्ट काकपिकन्यायः जुओ पृ० ६३२ करवानी इच्छावाळु [करवू काकमद्गु पुं० एक जातनी जळकूकडी कलुषीकृ ८ उ० मेलु, झांखु के कलुषित काकयव पुं० अंदर दाणो न होय तेवो कल्प पुं० बळ ; सामर्थ्य वांझियो यव (पोपटुं) कल्पसूत्र न० सूत्रोना रूपमा जुदा जुदा काकाक्षिगोलकन्यायः जुओ पृ० ६३२ विधिओनो संग्रह काक्ष न० गुस्साभरी तीरछी नजर कल्याणी स्त्री० पवित्र गाय काचमणिन्यायः जुओ पृ० ६३२ कवरीभर पुं० सुंदर मोटो अंबोडो काज न० लाकडानी मोगरी (हथोडी) कवलयति प० (खावू;कोळियो करी जवू) कात्यायन पुं० पाणिनिनां सूत्रो उपर कशात्रय न० घोडाने चाबुक मारवानी वार्तिक लखनार विख्यात वैयाकरणी त्रण रीत कादल वि० 'कदली' जातना हरणर्नु कश्यप पुं० जुओ पृ० ६०२ काद्रवेय पुं० एक प्रकारनो साप कष्टतपस् वि० कठोर तपस्या करतुं कानिष्ठिका स्त्री० नानी आंगळी कस्थूलिका स्त्री० ओस; झाकळ कानिष्ठिनेय पुं० सौथी नाना संतानकंकवदन न० पकड; सांडशी; चीपियो संतान (२) सौथी नानी पत्नी- संतान कंकेलि पुं० एक जातनुं वृक्ष (शरदमां कान्यकुब्ज पुं० जुओ पृ० ६०२ फूल बेसे छे) कापालिकत्व न० क्रूरता; बर्बरता कंटक पुं० वांस (के तेवू बीजं झाड) कापालिन् पुं० शिव (२) दोष (३) कारखानु (४) मकर कापाली स्त्री० खोपरीओनी माळा; (कामदेवनुं ध्वजाचिहन) मुंडमाळा (२) चालाक स्त्री कंटकम पुं० कांटाने झाड कापिल वि० कपिलनु; कपिले प्रवर्तावेलु कंठचामीकरन्यायः जुओ पृ० ६३२ । कापिशायन न० मद्य; दारू कंठत्र पुं० हार; कंठी [समान) काम पुं० जुओ पृ० ६०२ कंठनाल न० गळं; कंठ (कमळनी नाळ कामचारिन् वि० यथेच्छ विहरतुं (२) कंठवतिन् वि० कंठे आवेलु (बहार स्वच्छंदी (३) मनस्वी नीकळवानी तैयारीमां होय तेवू) कामज पुं० क्रोध कंठसूत्र न० एक प्रकारचें गाढ आलिंगन कामजित वि० कामविकारने जीतनाएं कंडूयति (-ते) (वलूर,; खंजवाळवू) (२) पुं० स्कंद (३) शिव कंड्यनक पुं० कान खोतरवानी सळी कामदुघ वि० दरेक इच्छा पूरी पाडनारं कंडूयित वि० वलूरनाएं; खंजवाळनाएं कामधेनु स्त्री० जुओ पृ० ६०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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