Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 693
________________ कोयष्टिक ६७९ क्रोडीक कोयष्टिक पुं० एक पंखी (२) नानुं कौंकाः, कौंकणाः पुं० ब० व० एक देश, (घोळं) बगला जेवं पंखी तेना लोको के तेना राजाओ। कोशलाः पुं० ब० व० कोशल देश के कौंजर न० योगीओनुं एक आसन तेना वतनीओ (जुओ पृ० ६०५) । क्रतुद्विष् पुं० राक्षस (२) रावण कोशवारि न० देवमूर्ति नवरावेलु पाणी क्रथकैशिकाः पुं० ब० व० एक देश (पोतानी सच्चाईनी परख करावा (विदर्भ) आरोपी त्रण वार पीए छे) ऋमयोगेन अ० क्रमपूर्वक ; योग्य क्रमे कोशातकी स्त्री० पटोलि (परवळ ऋमिक वि० आनुवंशिक; वंशपरंपरागत काकडी-डोडी)नो वेलो क्रमुक पुं० सोपारीनुं झाड कोष्ठी घेरी लेवू; वींटी वळवू क्रव्याद पुं० शिकारी प्राणी(जेम के वाघ) कोसलनक्षत्र न० एक नक्षत्र ऋशयति प० (दुर्बळ - कृश बनाववू) कोसलाः पुं० ब० व० कोशल देश के कंदित वि० जेनी समक्ष धा नाखी तेना लोको (जुओ पृ० ६०५) होय - पोकार को होय तेवू कोंकणाः पुं०ब०व० सह्याद्रि अने समुद्र क्रियापवर्ग पुं० कार्यनी समाप्ति (२) वच्चेनी पट्टीवाळो प्रदेश के तेना लोक मोक्ष; कर्ममांथी मुक्ति कौक्कुट वि० कूकडा क्रियायज्ञ पुं० धार्मिक विधि - संस्कार कौतुकमंगल न० लग्नविधि (जेम के गर्भाधान संस्कार) कौतुकवत् अ० कुतूहलथी क्रियार्थ वि० कोई प्रयोजन माटे जरूरी कौतुकागार पुं० विलासक्रीडानुं स्थान -उपयोगी एवं [करवू ते कौतुकिता स्त्री० कुतूहल ; उत्कंठा कौतुकिन वि० आनंदोत्सव माणतुं क्रियासमभिहार पुं० कोई कार्य वारंवार कौत्स पुं० वरतंतुनो एक शिष्य क्रियासंक्रांति स्त्री० पोतानुं ज्ञान बीजाने शीखववं ते [उपवन कौमारचारिन् वि० संयमी; ब्रह्मचारी कौमारबंधकी स्त्री० वेश्या क्रीडाकानन न० क्रीडा-विहार माटेनें कौमारिक वि० पुत्री उपर प्रेम राखतुं क्रीडाकोप पुं० कृत्रिम गुस्सो (२) पुं० कन्याओनो बाप क्रीडाकौतुक न० नकामुं कुतूहल (२) कौमुदीमुख न० चांदनीनुं दर्शन क्रीडा; विलास (३) मैथुन कौरव पुं० कुरुनो वंशज क्रीडामयूर पुं० क्रीडा - आनंद माटे कौलटेय न० जारकर्म पाळेलो मोर कौलाल पुं० कुंभार [पृ० ६०४) क्रीडाशैल पुं० क्रीडा – विहार माटे कौलत पुं० कुलूत देशनो राजा (जुओ बनावेलो कृत्रिम पर्वत कौशल्या स्त्री० जुओ पृ० ६०५ Qच् पुं० हंस जेवू एक पक्षी कौशांबी स्त्री० जुओ पृ० ६०५ क्रूरकर्मन् वि० घातकी कृत्य करनाएं कौशिकी स्त्री० जुओ पृ० ६०५ (२) ऋरदृश् वि० अनिष्ट नजरवाळ ; जेनी नाट्यलेखननी चार शैलीमांनी एक नजर पडतां अनिष्ट थाय तेवू (२) कौसल्य वि० कोसल देशना लोकोनुं पुं० शनि के मंगळ ग्रह कौसल्या स्त्री० जुओ पृ० ६०५ क्रूरम् अ० भयंकर रीते कौसुम न० फूलनो पराग (२)कांसाजळ क्रोडी स्त्री० भंडण; डुक्करी कौसुंभ पुं० कसूंबानुं फूल क्रोडीक आलिंगनमां लेवं; भेटवू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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