Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 708
________________ नित्यसत्त्वस्थ ६९४ निष्प्रचार नित्यसत्त्वस्थ वि० हमेशां सात्त्विक निर्मन्यु, निर्मन्युक वि० क्रोधरहित वृत्तिवाळू ; नित्य सत्य वस्तु विष स्थित निमंत्र वि० वेद-मंत्र न भणेलु (२) नित्याभियुक्त वि. निरंतर समाधि- __ मंत्र बोल्या विनानुं (विधि) युक्त चित्तवाळं [वर्षाऋतुनुं निर्मानमोह वि० मान अने मोहरहित निदाघवार्षिक वि० उनाळानुं अने निर्मास वि० मांसरहित निबंद्ध पुं० लेखक (२)टीकाकार निमिति स्त्री० रचना; सर्जन; कृति निमय पुं० अदलोबदलो; विनिमय निर्मुमुक्षु वि० मोक्षने झंखतुं निमा ३ आ० मापq; तुलना करवी निर्वत्सल वि० (संतान प्रत्ये) वात्सल्य (किंमतनी) विनानुं निमि j० जुओ प० ६१२ । कारण निर्वात पुं० पवन विनानुं स्थळ निमित्तनैमित्तिक न० (द्वि०व०) कार्य निर्वारित वि० निवारेल निमित्तमात्र न० मात्र निमित्तरूप निविचेष्ट वि० उद्यम रहित; हाल्या एवं ते करतुं चाल्या विनानुं नियमस्थ वि० नियम पाळतुं; तपस्या निविनोद वि० आनंद-प्रमोद विनानुं निराकृति पुं० अंगोपांग सहित वेदा निश्षिय वि० घर के रहेठाणमांथी भ्यास न को होय तेवो ब्रह्मचारी काढो मुकायल (२) क्षेत्र न होय (२) यथोचित स्वाध्याय न करनारो तेवं (३) विषयभोगमा अनासक्त ब्राह्मण (३)पंच महायज्ञ न करनारो निविषयोत वि० घरबार विनानु करायल बागलं जिरादान वि० कशु ज न लेतुं - निर्वीर वि० वीरो-बहादुरो वगरन (२) स्वीकारतुं (बुद्धनुं विशेषण) निर्वीरा स्त्री० पति-पुत्र भरी गया निराधार वि० अनाथ [ते होय तेवी स्त्री निरायजस्व न० ट्रंकु-सांकडं-नानु होवू नियाजम् अ० निखालसताथी निराशक पं० हताश निहारिन् वि० दूर सुधी फेलातुं (२) निराहार वि० आहार वयरनं ; उपनासी सुगंधी (३) पुं० बीजी गंधने दवावी निरुकान चु० नियोग विधिथो थयेलो दे तेवी गंध ~ क्षेत्र पुत्र निलिंद पुं० देव मिल्ट वि० रूढ; प्रचलित . निसिपाभित्र पुं० इंद्र निर्बल १५० गळी-टपकी-झरी जवू निवासरचना स्त्री० इमारत निर्गुर वि० घर विनानुं निविड वि० निबिड; गाढं करनाएं निर्जय पुं० पूरेपूरो विजय निवृत्तमांस वि० निरामिष आहार निर्माणका स्त्री० प्रायश्चित्त .. निशानिशम वि० दरेक राते; दररोज निर्दरासिन् वि० पर्वतनी गुफामां निषद् स्त्री० यज्ञदीक्षा (२) यज्ञकर्मनी रहेला देवता वगेरेनुं निरूपण करनार कृति निसपनोरथन्यायः जुओ पृ० ६३३ निषध पुं० जुओ पृ० ६१२। निधिन् वि० आग्रही; जक्की निषंगिन वि० आसक्त; वळगेलुं (२) नितीका अ० मांखीओ वगरनुं होय · भाथावाळू (३) तरवारवाळं तेम; निर्जन होय तेम । निष्प्रचार वि० एक जगाएं स्थिर निर्मत्सर वि० अदेखाई विनानुं रहेनारे; हालचाल न करनाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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