Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 684
________________ एकस्थान एकस्थान न० ए ज स्थान (२) नजीक - नजीक आवेलुं - ऊभेलुं होवुं ते एकादशन् वि० अगियार एकानविंशति स्त्री० ओगणीस एकासाशीति स्त्री० अगण्याएंशी एकावली स्त्री० मोती के मणकानी एक ज सेर एकाहार्य वि० एक ज आहारवाळं; भक्ष्याभक्ष्यनो भेद न करतुं एकांश पुं० जुदो विभाग - खंड एकैकम् अ० एक पछी एक एकोनविंशति स्त्री० ओगणीस एकोनाशीति स्त्री० अगण्याएंशी ऐकगुण्य न० सादा एकमरूप होवुं ते ( बेगणुं - त्रण गणुं नहीं ) ऐकमुख्य न० पूरेपूरुं मालकीपणुं (२) ताबेदारी ऐकांतिके एकांतमां; खानगीमां ऐक्ष्वाक पुं० इक्ष्वाकुनो वंशज ( २ ) इक्ष्वाकुना वंशजोनो देश ओघवती स्त्री० जुओ पृ० ६०१ ओजायते आ० ( पराक्रम दाखववुं ) ओत वि० वाणानी रीते वणायेलुं ओतप्रोत वि० ताणा - वाणानी पेठे वाईने एक थयेलुं ओरंफ पुं० मोटो वलूरो - घसरको औक्षक न० बळदोनो समूह औचथ्य वि० उतथ्यना वंशनुं - गोत्रनुं औडव वि० ताराओनुं Jain Education International ६७.० ऐ ओ औ औत्पातिक एतद्योनिन् वि० ए ज जेनुं समान उत्पत्तिस्थान छे बुं एता स्त्री० हरणी एतावन्मात्र वि० एटला कदनुं; एटलं एधित वि० वधेलुं; विकसेलं ( २ ) उछेरवामां आव्युं होय तेवुं; उछेरैल एवमादि वि० एवा गुणधर्मवाळं; एवा प्रकारनुं एवंगुण वि० एवा गुणवाळं एवंप्राय वि० ए प्रकारनुं; ए जातनुं एवंवादिन् वि० एम बोलतुं एब् १ उ० पासे जवुं (२) सरकवूं (३) जाणवुं ऐषीक वि० बरु के नेतरनुं बनावेलु ऐंगुद वि० इंगुदी वृक्षनुं (२) न० इंगुदीनं फळ ऐंद्रशिर पुं० एक जातनो हाथी ऐंद्राग्न वि० इंद्र अने अग्नि संबंधी ऐंधन वि० बळतणथी उत्पन्न थयेलं (अग्नि) ओषधिज पुं० अग्नि ओषधिप्रस्थ पुं० हिमालयनी राजधानी ओष्ठावलोप्य वि० होठ वडे खवाय तेबुं ओंकार पुं० ॐ प्रणव (२) तेनो उच्चार ( ३) प्रारंभ; शरूआत (ला० ) औत्तंक वि० उत्तंक मुनिनुं औत्पातिक न० भावि उत्पात के अनिष्ट सूचवनारं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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