Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad
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मवली ६५३
अवृक्ष अवली ४ आ० चोटवू; लटकवू (२) अविगान, अविगीत वि० विसंवाद रहित
वळवू; नमवू (३) -मां छुपाएँ। अविचारणीय वि० विचार्या के प्रश्न अवलुप् ६ उ० [अवलंपति-ते] उपर पूछया विना पालन करवा योग्य । धसी जq (जेमके, शिकार उपर) अविच्छिन्न वि० सळंग होय तेवू; (२) खाई जवू; गळी जर्बु (३) अखंडित (२) सामान्य कचरी नाखवू; दबावी देवू
अविज्ञेय वि० जाणी के ओळखी न अवलोकक वि० -नी तरफ जोतुं; -ने
शकाय तेवू जोवा इच्छतुं
अवितकित वि० नहि कल्पेखें अवलोकिन् वि० जोतुं; निहाळतुं
अवितृ वि० रक्षणहार अवशप्त वि० शापित
अविद अ० ओ रे! ओ रे! अवशिका स्त्री. स्वतंत्र एवी स्त्री
अविदित वि० जाण्या विनान; अजाणमां अवष्टंभमय वि० सोना-; सोनेरी (२)
ज गयुं होय तेवू एंटवाळ; बहादुरीवाळू
अविदूर वि० नजीक होय तेवू अवसादक वि० खेद-थाक-मूर्छा करतुं
अविधवा स्त्री० जेनो पति जीवतो अवसादिन वि० हताश थ]; बेसी
होय तेवी स्त्री पडतुं; मूछित थतुं अवसुप्त वि० ऊंघेलं
अविधा अ० 'धाजो!' 'धाजो!' अवसृ.१ प० व्यापq; फेलावू
(एवो मदद माटेनो पोकार) अवस्कन्न वि० हमलो करायेलं; बळा
अविधि वि० विधि के नियम प्रमाणे त्कार करायेलुं
न होय तेवं (२) पुं० ब्रह्म (जेनो
[करतुं अवस्कंदिन वि० हुमलो करतुं; बळात्कार
निर्देश न करी शकाय) अवस्नात वि० नाहेलं पाणी
अविधेय वि० काबुमां न रखाय तेवू अवस्फूर्ज अवाजथी भरी काढवू
अविनाश पुं० अमृतत्व; मोक्ष ; निर्वाण अवस्फजित न० गर्जना [काढवू
अविनिर्णय पुं० अनिश्चय अवहस् १ प० हांसी करवी; हसी
अविप्रहत वि० अवर-जवर विनान अवहसन न० हांसी; ठेकडी
अवियुक्त वि० संयक्त; अविभक्त अवहास्य वि० हांसी करवा लायक
अविरलित वि० खूब नजीक होय अवहीन वि० त्यजायेलं; छोडी दीधेलं;
तेवू; वच्चे अंतर विनानुं पाछळ केलं
अविरुद्ध वि० विरुद्ध के विसंगत नहि अवंति (-ती) स्त्री० जुओ पृ० ५९८ तेवू (२) योग्य ; उचित अवाप्तव्य वि० मेळववा योग्य
अविरोध पुं० सुसंगतता; विरोधी न अवार्य वि० दूर करी न शकाय तेवू; होवू ते (२) डखल के रुकावटनो वारी न शकाय तेवू
अभाव
[विनान अविकारिन् वि० बदलाय नहि तेवू; अविलुप्त वि० अक्षत; ईजा पाम्या अफर (२) वफादार
अविश्वस्त वि० विश्वासु न होय तेवू; जविक्षत वि० अखंडित; ईजा न पामेलु विश्वास न करवा लायक अविक्षित वि० ईजा न पामेलु; ओछु अवीक्षिन् वि० न जोतुं; जोवा न न थयेलं
[तेवू पाम्युं होय तेवू अविक्षोभ्य वि० अजेय; क्षोभ न पामे अवृक्ष वि० झाड विनानुं
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