Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad
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उच्छित्ति ६६३
उत्पाटिन् (२) प्रकाश ; हालतुं (३) देखातुं; उत्तमवता स्त्री० पतिव्रता स्त्री नजरे पडतुं
उत्तमाधममध्यम वि० उत्तम कोटीजें, उच्छित्ति स्त्री० उच्छेद; नाश
हीन कोटी, अने मध्यम कोटिनुं उच्छंगित वि० ऊंचां शिंगडांवाळू उत्तर पुं० जुओ पृ० ६०० उच्छषण न० शेष वधेलु - रहेलुं ते उत्तरकुरवः पुं० ब०व० जुओ पृ०६०० उच्छायिन् वि० ऊंचं
उत्तरकोसलाः पुं०ब०व० कोसल देशनो उच्छि -प्रेरक० वधारवं (२)ऊंचुंकरवू उत्तरनो भाग [आच्छादन उच्छ्वसन न० ऊंडो श्वास लेवो ते उत्तरच्छद पुं० पथारी उपरनी चादर(२)
(२) ऊंचुं थq - ऊपसवं ते (३) उत्तरण न ओळंगq - पसार करवू ते ' ढीलुं थर्बु ते; छूटी जq ते
उत्तरदायक वि० उद्धत; सामो जवाब उच्छ्वासिन् वि० श्वास लेतुं (२) आपतुं ऊछळतुं; ऊंचे-नीचुंथतुं (३)निसासा उत्तरपंचालाः पुं० जुओ पृ० ६०० नाखतुं (४) झांखु पडतुं; ऊडी जतुं उत्तरवस्त्र न० उपर पहेरवानो झम्भो उज्जयंत पुं० जुओ पृ० ६००
उत्तरंग पुं० ऊंचं चडेलं मोजें उज्जयिनी स्त्री० जुओ पृ० ६०० उत्तरा स्त्री० जुओ पृ० ६०० उज्जिहाना स्त्री० एक नगरी । उत्तराधरौ पुंद्वि०व० उपरनो अने उतथ्यानुज पुं० बृहस्पति (देवोना नोचेनो ओठ . आचार्य)
उत्तरारणि स्त्री० अग्नि प्रगटाववा उतूलाः पुं० ब०व० एक जातिना लोको . वपरातां अरणिनां बे लाकडांमांथी उत्कयति प० (उत्कंठित करवू; उद्विग्न
रवैयानी पेठे फेरववानुं उपरनुं लाकडं करवू)
उत्तंस वि० जीभने उत्तेजक एवं; उत्कल पुं० जुओ पृ० ६००
चटाकेदार (२) पुं० जुओ पृ० ९२ उत्कंठते आ० (आतुर थवू; झंख) उत्तंसयति प० (वाळने बांधवा; कलगी उत्कंप वि० कंपतुं (२) पुं० कंप; तरीके वापर; शोभावq) ध्रुजारी; क्षोभ
उत्तानपाद पुं० जुओ पृ० ६०० । उत्कार पुं० धान्य ऊपणवू ते (२) उत्तानशय वि० चत्तुं सूतेलं . धान्यनो ढगलो करवो ते
उत्तानित वि० ऊंचुकरेलु (२) उघाडेलु उत्कूर्चक वि० हाथमां कूचडो होय तेवू (३) फेलावेलु उत्कूलित वि० किनारे धकेलायेखें। उत्तेजना स्त्री० उश्केरवं ते (२) धार उत्कोचिन् वि० रुश्वतखोर; लांचियु ___ काढवी ते उत्क्रुष्ट न० बूम; पोकार
उत्थात वि० उत्पन्न थतुं; ऊठतुं उत्क्रोशपात पुं० एक प्रकार- नृत्य उत्थानशीलिन् वि० उद्यमी उत्क्लेद पुं० भीनुं थर्बु ते
उत्थाथिन् वि० ऊठतुं ; बहार नीकळतुं; उत्क्वथ् -कर्मणि० काढानी रीते देखातुं उकाळावं - ऊकळवू
उत्पतित वि० ध्वस्त; नष्ट [ऊडतु उत्क्षेपण न० ऊंचकवू - ऊंचुं करवं ते उत्पतिष्णु वि० ऊंचे जतुं; ऊछळतुं; उत्खचित वि० गूंथेलं - वणेलुं - जडेलु उत्पाटिन् वि० (समासने अंते) उखेडी उत्तमगुण वि० उत्तम गुणवाळं; श्रेष्ठ नाखतुं; खेंची काढतुं
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