Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 660
________________ अपमूषित अपमृषित वि० असह्य ; अणगमतुं अपयान न० नासी छूटवू ते (२) उपेक्षा; बेदरकारी (हाथ, पग इ०) अपरगात्र न० गौण अवयव के अंग अपरथा अ० बीजी रीते [आगळ अपरापरम् अ० उत्तरोत्तर; आगळ ने अपरांत पुं० जुओ पृ० ५९७ अपरिक्रम वि० आसपास फरवाने अशक्तिमान एवं [कर्यु होय तेवू अपरिनिष्ठित वि० बराबर स्थापित न अपरिसंस्थित वि० कोई जगाए स्थिर न रहेतुं एवं अपरोप पुं० गादीएथी उठाडी मूकवू ते अपर्याप्तवत् वि० असमर्थ अपर्वन वि० पर्वनो दिवस न होय तेवू (२) योग्य समय के मोसम विनानुं अपलापिन् वि० छुपावतुं; ढांकी देतुं अपलाषुक वि० तरस अथवा तृष्णाथी मुक्त एवं (२) तरस्यु अपवत्सय बहु लाड नहीं तेम बहु बेदरकारी नहीं एम सावचेतीथी वर्तवू अपवल्गित वि० टींगावेलु; लटकावेलं अपवाद पुं० निंदा; गाळ (२) आळ ; कलंक (३) सामान्य नियममां बाध (४) हुकम; आज्ञा (५) हरणोने लोभाववा वगाडातुं वाद्य अपवादिन वि० अपकीर्ति करतुं ; निंदतुं (२) विरोध करतुं अपवारक पुं० पडदो; आड अपवाहित वि० हांकी काढेलं;दूर करेलु अपविघ्न वि० विघ्न के अंतराय विनाअपविद्या स्त्री० अज्ञान; माया; अविद्या अपवोढ़ वि० लई जना; दूर करनाएं अपश्री वि० सौंदर्य के शोभा विनानुं अपष्ठु अ० खोटी रीते; असत्य रीते अपसार पुं० बहार नीकळवू ते; नासी जवं ते (२) बहार नीकळवानो मार्ग अपसत वि० नीचे पडेलं के गरेल (२) फेलावेलु (३) छोडेलुं; फेंकेलं अप्रतिमानुष अपसृष्ट वि० जेणे छोडी के तजी दी, छे तेवं [कोई पण भाग अपस्कर पुं०,न० पैडां सिवायनो गाडीनो अपस्नात वि० स्वजनना मृत्यु पछी स्नान कर्यु होय तेवू (बीजी उत्तरक्रिया करवा माटे) अपस्पश वि० जासूस विनानुं [वाळू अपस्मारिन् वि० फेफळं-वाईना व्याधिअपहार पुं० लावतुं ते; लई आवq ते अपहारिन् वि० लई जनाएं; उपाडी जनाएं (२) चोरी जनाएं अपाकरिष्णु वि० दूर करनाएं (२) पाछळ पाडी देनाएं; चडियातुं अपाकृत वि० दूर करेलु (२) विनानुं रहित [नीपजती लागणी अपाकृति स्त्री० क्रोध, भय वगेरेथी अपात्रभृत् वि० नालायकने पोषतुं अपानृत वि० साचुं; खरं [स्त्री अपांसुला स्त्री० सती; अव्यभिचारिणी अपिपरिक्लिष्ट वि० खूब हेरान थयेलं अपुष्कल वि० पुष्कळ नहि तेवू (२) हीन; अधम अपुंस्का स्त्री० पति विनानी स्त्री अपूदिन वि० पत्नी साथे पहेलां परिणीत जीवन न भोगव्यु होय तेवू अपृथक्त्वन् वि० (पुरुष अने प्रकृतिनो) भेद न करी शके तेवू अपेक्षिन् वि०' –नी राह जोतुं ; अपेक्षा राखतुं; दरकार करतुं अपोहित वि० दूर करेल (२) खंडन करेल अप्रकाश वि० प्रकाशित नहि एवं अप्रकाशम, अप्रकाशे अ० छूपी रीते; छानी रीते अप्रख्यता स्त्री० अपकीर्ति अप्रतिभट वि० बिनहरीफ एवं अप्रतिम वि० अनुचित अप्रतिमान वि० बिनहरीफ; अनुपम अप्रतिमानुष वि० असाधारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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