Book Title: Videsho me Jain Dharm Author(s): Gokulprasad Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 6
________________ पूर्वाक् आज से छह हजार वर्ष पहले उत्तर भारत का महानगर कालीबंगा सरस्वती महानदी के तट पर बसा हुआ था जो आत्ममार्गी अनुजनपद की राजधानी था। यहाँ जैनधर्म की महती प्रभावना थी। इसके अन्तर्गत राजस्थान का गगानगर जिला और उसके आसपास का क्षेत्र आता था। मिश्र, सुमेर और अन्य देशों के जहाज तटीय परिवहन मार्ग से भारत आते थे। वे चन्हुदडों, मोहनजोदडो और कालीबगा व्यापार सामग्री और यात्रियो को लाते ले जाते थे। भारत के इन देशों के साथ व्यापक व्यापारिक और सास्कृतिक सम्बन्ध थे। अनुजनपद के जैनाचार्य ओनसी थे। वे दर्शन, जैन तत्वार्थ ज्ञान, अर्थव्यवस्था और राजव्यवस्था आदि में पारंगत थे। इसी प्रकार, लगभग 5500 वर्ष पहले अफरीकी महाद्वीप के मिश्र क्षेत्र से भारत के सास्कृतिक सम्बन्ध थे और भारत का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी पूर्ण विकसित अवस्था में था। उद्योग, कृषि, नगर निर्माण, नहर निर्माण आदि उन्नत अवस्था मे थे। वहा समतामूलक आत्ममार्गी जनपद व्यवस्था विद्यमान थी और मनीस मिश्र की जनपद व्यवस्था पर आधारित पहला जनराजन था। मिश्र के प्राचीन शिलालेखों के अनुसार, मनीस का एक और नाम नरमेर भी मिलता है। ___ लगभग 4700 वर्ष पूर्व सुमेर क्षेत्र (सुमेरिया) आत्ममार्ग का अनुयायी था। वहा जैनधर्म की महती प्रभावना थी। जनपद पद्धति (चुनावी पद्धति) पर आधारित सुमेरिया का अति प्रसिद्ध सन्यासी जनराजन गिलगमेश था। वह लगभग 4700 वर्ष पहले सुमेर क्षेत्र से भारत आया था और भारत क्षेत्र के सबसे बड़े जीवन्मुक्त सन्यासी जैन आचार्य उत्तमपीठ से आत्ममार्ग और आत्मसिद्धि का ज्ञान और आचार सीख कर गया था। सुमेर क्षेत्र के लोग तत्कालीन जैनाचार्य उत्तमपीठ को उतनापिष्टिन के नाम से आज तक याद करते हैं। गिलगमेश एक माह जीवन्मुक्त जैनाचार्य उत्तमपीठ के आश्रम में रहकर वापिस सुमेरिया चला गया और उसने वहा आत्ममार्ग का व्यापकPage Navigation
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