Book Title: Vidaai ki Bela
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ buur 50m . लेखक के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकाशन मौलिक कृतियाँ अब तक प्रकाशित प्रतियाँ कीमत ०१. संस्कार (हिन्दी, मराठी, गुजराती) ५६ हजार ५०० १८.०० ०२.विदाई की बेला (हिन्दी, मराठी, गुजराती) १ लाख सात हजार १२.०० ०३. इन भावों का फल क्या होगा (हि. म., गु.) ४९ हजार १८.०० ०४. सुखी जीवन (हिन्दी) (नवीनतम कृति ) २३ हजार ०५. णमोकार महामंत्र (हि., म., गु., क.) ६७ हजार ५०० ०६. जिनपूजन रहस्य (हि.,म., गु., क.) १ लाख ७९ हजार २०० ०७. सामान्य श्रावकाचार (हि., म., गु.,क.) ७१ हजार २०० ०८. पर से कुछ भी संबंध नहीं (हिन्दी) ८ हजार ०९. बालबोध पाठमाला भाग-१(हि.म.गु.क.त.अं.) १०. क्षत्रचूड़ामणि परिशीलन (नवीनतम) ११. समयसार : मनीषियों की दृष्टि में (हिन्दी) ३ हजार १२. द्रव्यदृष्टि (नवीन संस्करण) ५ हजार १३. हरिवंश कथा (दो संस्करण) १० हजार १४. षट्कारक अनुशीलन ५ हजार १५. शलाका पुरुष पूर्वार्द्ध (दो संस्करण) ७ हजार १६. शलाका पुरुष उत्तरार्द्ध (प्रथम संस्करण) ५ हजार ३०.०० १७. ऐसे क्या पाप किए (दो संस्करण) ८ हजार १५.०० १८. नींव का पत्थर ५ हजार सम्पादित एवं अनूदित कृतियाँ (गुजराती से हिन्दी)१९ से २९. प्रवचनरत्नाकर भाग - १ से ११ तक (सम्पूर्ण सेट) १६०.०० ३०. सम्यग्दर्शन प्रवचन ३१. भक्तामर प्रवचन ३२. समाधिशतक प्रवचन ३३. पदार्थ विज्ञान (प्रवचनसार गाथा ९९ से १०२) ३४. गागर में सागर (प्रवचन) ३५. अहिंसा : महावीर की दृष्टि में ३६. गुणस्थान-विवेचन ३७. अहिंसा के पथ पर (कहानी संग्रह) ३८. विचित्र महोत्सव (कहानी संग्रह) ४.०० २५.०० सूर्य अस्ताचल की ओर ढल चला था और अपनी सिन्दूरी किरणों से गगनमंडल में लालिमा बिखेरता हुआ पश्चिम दिशा के पहाड़ी सौन्दर्य में चार चाँद लगा रहा था। वैसे पहाड़ी प्रदेश अपने आपमें भी कम सुन्दर नहीं था, पर सूर्य की किरणों से वह और भी आकर्षक लगने लगा था। सूर्य ढल जाने से उसकी तपन से तो लोगों को मुक्ति मिल गई थी, उनका शारीरिक संताप तो कम हो गया था; पर मानसिक पीड़ा से वे अभी भी परेशान थे; क्योंकि विषय-कषाय व राग-द्वेष में रचे-पचे विभिन्न रुचियों वाले व्यक्तियों के एक साथ उठने-बैठने और साथ-साथ रहने से पारिवारिक परिवेश में पैदा हुई कषायों के कारण मनस्तप हुए बिना नहीं रहता। जिसप्रकार दो पत्थरों के आपस में टकराने में चिनगारियाँ निकलना स्वाभाविक हैं; उसीप्रकार जब दो व्यक्तियों के स्वार्थ और कषायें टकराती हैं तो राग-द्वेष की चिनगारियाँ निकलना भी स्वाभाविक ही हैं, जोकि मनस्तप की जन्मदात्री हैं। __ परिवार के बीच आखिर कोई कब तक मुँह पर मुसीका लगाये, मुँह बन्द किए, मौन से बैठा रह सकता है? यदि कोई चूप रहने की कोशिश करे भी तो वह भी तो उसकी नाराजगी का ही प्रतीक बन जाता है। अतः पारिवारिकजनों के बीच में व्यक्तियों का बोलना जरूरी भी है और मजबूरी भी। जब एक स्थान पर रखे अचेतन बर्तन भी टकराने पर बिना बजे नहीं रह सकते तो सचेतन प्राणी बिना बोले कैसे रह सकते हैं? अतः बातें होना 30.mom ००००००००० 66666666 (5)

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