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• रूप गुणों के द्वारा धर्म एवं व्यक्ति की परीक्षा की जाती है
धम्मो मंगल मुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो। देवा पि तं नमस्संति जस्स धम्मे सया मणो।।
__ . मूलाचार; दशवैकालिक, १.१ संजमु सीलु सउज्जु तवु सूरि हि गुरु सोई। दाहक-छेदक-संधावकसु उत्तम कंचणु होई।। भाव पाहड-१४३
जीवन का सर्वागीण विकास करना संयम का परम उद्देश्य रहता है। सूत्रकृताङ्ग (१.९.६) में इस उद्देश्य को एक रूपक के माध्यम से समझाने का प्रयत्न किया गया है। जिस प्रकार कछुआ निर्भय स्थान पर निर्भीक होकर चलता-फिरता है, किन्तु भय की आशंका होने पर शीघ्र ही अपने अङ्ग-प्रत्यङ्ग प्रच्छन्न कर लेता है और भय-विमुक्त होने पर पुन: अङ्ग-प्रत्यङ्ग फैलाकर चलना-फिरना प्रारम्भ कर लेता है। उसी प्रकार संयमी व्यक्ति अपने साधना मार्ग पर बड़ी सतर्कता पूर्वक चलता है। संयम की विराधना का भय उपस्थित होने पर वह पचेन्द्रियों व मन को आत्मज्ञान में ही मोपन कर लेता है। मैत्री, करुणा, मुदिता और माध्यस्थ भाव समभाव की परिधि में आते हैं। समभावी व्यक्ति समाचारिता का पालक और सर्वोदयशीलता का धारक होता है।
अध्यात्म का सम्बन्ध अनुभूति से है और हिंसा-अहिंसा का सम्बन्ध अध्यवसाय-संकल्प से है। अध्यात्म और संकल्प से आस्था की सृष्टि होती है। जिससे मानसिक दुर्बलता से भरी विलासिता समाप्त हो जाती है, स्वार्थ और अहंकार का विसर्जन हो जाता है, परिशोधन और पवित्रता के आन्दोलन से वह जुड़ जाता है। यह भोग में भी योग खोज लेता है।
जैन संस्कृति मूलत: अपरिग्रहवादी संस्कृति है। जिन, निग्रन्थ वीतराग जैसे शब्द अपरिग्रह के ही द्योतक हैं। मूर्छा परिग्रह का पर्यायार्थक है। वह मूर्छा प्रमाद है और प्रमाद कषायजन्य भाव है। राग-द्वेषादि भावों से ही परिग्रह की प्रवृत्ति बढ़ती है। मिथ्यात्व, कषाय, नोकषाय आदि भाव अन्तरंग परिग्रह हैं और धन-धान्यादि बाह्यपरिग्रह है। ये आश्रय के कारण हैं। आश्रव का कारण आसक्ति हैं परिग्रह है। परिग्रह का मूल साधन हिंसा है, झूठ, चोरी, कुशील उसके अनुवर्तक हैं। और परिग्रह तथा प्रदूषण उसके फल हैं। परिग्रही वृत्ति व्यक्ति को हिंसक बना देती है। इस हिंसक वृत्ति से तभी विमुख हो सकता है व्यक्ति जब वह अपरिग्रह या परिग्रह परिमाणव्रत का पालन करे।
क्षमा, मार्दव आदि दस धर्मों का पालन भी धर्म है। मनुष्य गिरगिट स्वभावी है. अनेक चित्त वाला है। क्रोधादि विकारों के कारण वह बहुत भूलें कर डालता है। क्रोध विभाव है, परदोषदर्शी है। क्षमा आत्मा का स्वभाव है, परपदार्थों में कर्तृत्व बुद्धि से,