Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 14
________________ वैराग्यकहेती हवी. हे पुत्र ! पामेला एवा मंजम जोगोने विषे तहारे प्रयत्न करवो. अने न पामेला एवा संजन भाषांतर शतकम् | JE जोगोने पामवाने अर्थे घटना एटले रचना करवी. वली प्रत्रज्या पलवाने विषे पोताना पुरुषपणानो अभि-JE सहित मान सफल करवो, अने प्रमाद तो करवोज नही. ए प्रकारे कहीने त्यार पछी माता पिताओ भगवंत प्रत्ये ॥ १२॥ | नमस्कार करीने परिवार सहित पोताने स्थानके गया. त्यारपछी अतिमुक्तक कुमार, श्रीवीरस्वामी समीपे l | आवीने वंदनादि करीने प्रवर्जित थयो. त्यारपछी श्रीवीरस्वामीए पण पंचमहावत ग्रहण कराववा पूर्वक एटले | |पंचमहाबत ग्रहण करावीने क्रिया कलापादि शीखवाने अर्थे गीतार्थ एवा स्थविर मुनियोने सोंप्यो. त्यार पछी | प्रकृतिए करीने भद्रक एवो, अने विनीत एवो, अतिमुक्तक नामे कुमार श्रमण, एक दहाडो महोटी वृष्टि | JE/ |पडे सते एटले घणो वरसाद पडे सते कारखने विषे पात्रु अने जोहरण लेइने बहार निकल्यो. त्यां जलनो ||| प्रवाह वहेतो देखीने बाल अवस्थाना वश थकी माटीप करीने पाल बांधीने जेम नावनो चलावनार नाव प्रत्ये चलावे छे, तेम आ अतिमुक्तक साधु पात्राने, आ महारी नाव छे, ए प्रकारे कल्पना करीने ते पाणीमां चलावतो सतो रमतो हवो. ते अवसरे स्थविर मुनियो तेनी ते अतिशे अघटीत चेष्टा देवीने ते साधु प्रत्ये हांसी करना होय ने शुं जेम ! एम भगवंत समीपे आवीने भगवंतने ए प्रकारे पूछता हवा. हे स्वामिन् ! आपनो अंतेवासी | Ioe अतिमुक्तक नामे कुमार श्रमण, केटला भवोए करीने सिद्धिपदने वरशे? त्यारे भगवंते कयुं. हे आर्यो! महारो hil अंतेवासी अतिमुक्तक साधु, एज भवमा मिद्विपदने वरशे. ते कारण माटे हे रूडा पुरुषो! तमे अतिमक्तक कमार | - ADDAUNULMULADA ___JainEducation inten 0 10_05 For Private Personal use only Jwww.jainelibrary.org IF

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