Book Title: Vaidyavallabh
Author(s): Hastikruchi Kavi
Publisher: Hastikruchi Kavi

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Page 6
________________ (2) वैद्यवल्लभ। बळधानहै वासों वा रोगके चूर करनेके कारण अति कारक औषध कहों हो // 3 // पूर्व ज्वरे सदा कुर्याद्रेचनं रोगशान्तये // पश्चाल्लंघनभैषज्यं कुर्वाणो जायते सुखी // 4 // भाषाटीका // पहलेही ज्वरमें दस्तावरविधि कर चाहिये पीछे लंपन मोषध करै वासों रोगी सुखी होइहै।।४ अथ वातज्वरे काथः॥ अमृता नागरं मुस्ता निशा धान्यं समानकैः // वातज्वरे प्रदातव्यः कृष्णायुक्तः कषायकः // 5 / भाषाटीका // गिलोय, सोठ, नागरमोथा, हरदी, ध. नियां ये सब बराबर ले काढाकर पीपलके चूर्ण के संग देवे तो वदोके ज्वरको शान्ति करे हे // 5 // अथ पित्तज्वरे कषायः // द्राक्षा चारग्वधो मुस्ता रेणुपथ्याजलैः समम् // काथो मधुयुतो हन्ति ध्रुवं पित्तज्वरं महत् // 6 // भाषाटीका // मुनक्का दाख, अमलतासका गुदा,नागरमोथा, रेणुका, कोई पाकी प्रतिनिधिमें पित्तपापो गेरे हैं, हरड,नेत्रवाको ये सब बराबर के वाको भौटायकर सहवर्ष संग पीने सो महसित ज्वर निश्चय नाश होई // 6 // अथ कफज्वरे कषायः // पासामंपिकतिक्तांभोधरन्वकधान्यकैः //

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