Book Title: Vadsangraha
Author(s): Yashovijay Upadhyay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 10
________________ २ - सामान्यवाद में जनमतानुसार- 'वस्तु के समान परिणाम' को सामान्य पदार्थ बताया है। उसके बाद नैयायिक बौद्ध आदि के अभिमत सामान्य पदार्थ का मण्डन और खण्डन किया है । अन्त में उन्होंने बताये हुए लक्षण को आदरणीय बता कर उसकी उपपत्ति के लिये युक्तियाँ दी गई हैं और साथ साथ अन्य दार्शनिकों ने बताये हुए बाधकों का निराकरण कर दिया है । ३ - विशेषवाद में नैयायिक अभिमत विशेषपदार्थ में अनेक बाधकों को बताकर जैन मतानुसार 'वस्तु के व्यावृत्ति अंश' को ही विशेष पदार्थ बताया गया है । उसके बाद उसमें बाधक युक्तियों का खण्डन करके उसका संयुक्तिक समर्थन किया गया है। ४ - इन्द्रियवाद में पहले सांख्य के अभिमत वाक्-हस्त आदिके इन्द्रियत्व का बाधकों द्वारा निराकरण करके जैन मतानुसार स्पर्शन आदि पाँच में इन्द्रियत्व का समर्थन किया है। बाद में मन को भी इन्द्रिय मानने वाले नैयायिक मत का पूर्वपक्ष कर के उसका बाधक युक्तियों द्वारा निराकरण किया गया है। उसके बाद जैन मतानुसार द्रव्य भाव रूप इन्द्रियों के भेदों का सविस्तर विवेचन किया गया है। ५- अतिरिक्तशक्तिवाद में शक्ति को भिन्न पदार्थ न मानने वाले वैशेषिक आदि के पदार्थषटक विभाग का पहले खण्डन किया गया है । इसके बाद प्रतिबन्धक के अभाव से शक्ति को चरितार्थ करने वाले प्राचीन और नव्य नैयायिकों के मत की समीक्षा कर के स्याद्वादरत्नाकर आदि के आधार से 'शक्ति भिन्न पदार्थ है' इस सत्य का सविस्तर समर्थन किया गया है। इस वाद में प्रसङ्ग से प्रतिष्ठित और शाश्वत प्रतिमाओं की पूज्यता के प्रयोजक धर्म पर विचार किया गया है और उसमें मिमांसक और चिन्तामणिकार के मत की समालोचना भी की गई है।

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