Book Title: Updesh Chintamani Satik Part 04
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 186
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उप चि मिति. ततस्तस्य योग्यतां विज्ञाय वक्ति, नो यावृत्त्यं कुरु ? स्वाध्याय वा अधीष्वेति. ततः ताभा.४|| स साधुर्मुर्वा देशेन करोति वैयावृत्यं स्वाध्यायं वा, न पुनः स्वबुध्या किंचित्कुर्यात्, यदाह१०४० बमदसमवा-लसेहिं मासकमासम्खमणेदि ॥ अकरंता गुरुवयणं । अणंतसंसारिया नणिया ॥ १ ॥ ३० ॥ ततश्च ॥ मूलम् ॥--किंचूणपोरसीए । अपमिकतो य चरमकालस्त ॥ सुचविहिणा यासी. णो । पमिलेह पननिजोगं ॥ ३१ ॥ व्याख्या--इह चतुझांविनक्तस्य ननसो यदा प्रथम जागं किंचिन्न्यूनं सूर्यः प्राप्तो जवति तदा किंचिना पौरुषी. अस्याश्च परिझानाय-यासाडे मासे दोपया । पोसे मासे वनप्पया ॥ चित्तासोएसु मासेसु । तिपया हवइ पोरिसी ॥ १॥ अंगुलं सत्तरतेण । परकेण य दुअंगुलं ॥ वकृए हायर वावि । मासे मासे चन अंगु. लं ॥ २ ॥ जिज्ञामूले आसाढ-सावणे नहिं अगुलेहिं पडिलेहा ॥ अहिं बीयतीय मि । त. इए दस अहहिं चउत्थे ॥ ३ ॥ इत्येतनाथात्रयं स्मर्य, सुप्रसिद्धत्वाञ्च न व्याख्यातं, नवरं | सत्तरत्तेणंति सप्ताहोगत्रेण, एतच्च निधिपातपकापेक्कयोक्तं. अन्यथा सप्तरात्रेण साउँनेति For Private and Personal Use Only

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