Book Title: Updesh Chintamani Satik Part 04
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 229
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लाभा४) उपचिं- || नानारलोपमानोमुग एकटिगुणः प्रोल्लसत्कंदरास्यः ॥ यावन्मेरुः कुमारो वसति वसुमतीमातुरंके सलीलं । तावद्वृत्तिः शुभेयं जगति विजयतां वाच्यमाना मुनींद्रैः ॥ १८ ॥ इति श्री मदंचलगठाधीश्वर महाकवि श्रीजय शेखरसूरिविरचितायां श्रीम डुपदेशचिंतामणिटीकायांचतुर्थो जागः समाप्तः ॥ तत्समाप्तौ च समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमच्चारित्र विजयसुप्रसादात् ॥ १०८३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महान् ग्रंथ वापी प्रसिद्ध करवामाटे तेनी लखेली प्रति व्यादिक मेळवी यापवामां वर्तमानकाळे विचरता, तथा श्रीमदंचलगबनो उद्योत करनारा त्यागी वैराग्यवान् मदासंवेगी मुनिमहाराज श्री गौतमसागरजी महाराज तथा तेमना प्रशिष्य श्रीधर्म सागरजी महाराजे घणी सहाय आपली बे, अने तेथे । तेमनी सहायर्थी स्वपरना श्रेयमाटे या ग्रंथ श्री जामनगर निवासी पंमित श्रावक हीरालाल हंसराजे पोताना श्री जैनजास्करोदय वाप खानामां बापी प्रसिद्ध कर्यो वे ॥ श्रीरस्तु || +4893364 For Private and Personal Use Only 6

Loading...

Page Navigation
1 ... 227 228 229 230