Book Title: Updesh Chintamani Satik Part 04
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 207
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६१ उप | रंति एवं वंदित्ता उत्थाय उजयकरगदियरहरणा श्रद्धावयणकाया पुवपरिचिंतिए दोसे भा. ४ जहा रायलियाए संजयनासाए जहा गुरूसुणंति, तदा पवकुमाणसंवेगा मायामयविष्यमुक्का अपणो विसुद्धिनिमित्तमालोयंति. जइ नत्थि इयारो ताहे सीसे संदिसदत्ति नलिए गुरुहिं पकिमहत्ति जाणियवं. अह अश्यारो पायवित्तं पुरिमलाइ दिति, तनुं गुरुदिन्नपायवित्ता विहिया निसीइत्ता समजावजाविया सम्ममुवउत्तो णवत्थपसंगजीया पर पर संवेगमावजमाणा दंसमसगाइ अगमाणा पर्यपण सामाइयमाश्यं परिक्रमणसुत्तं कति. जाव तस्स धम्मस्सत्ति पयं तर्ज उध्धुडिया अजुडिमि आराहणाए इच्चाई जाव वंदामि जिणे चवी संति जणित्ता खामणानिमित्तं किइकम्मं करिता जति, इछामि खमासमो नंतर देव सियं खामेनुं जंकिंचियं अपत्तियं इत्यादि पञ्चा साहुदुगं खामंति, रियलियावणनिमित्तं किश्कम्मं करंति न्यायरि उवज्जाए गाहा, एएया जिसंबंधेण वंदातरं खमावणा. तर्ड से सगावि जीवा खमावेयवा. त फुरालोइयं वा पमितं वा हुआ, अयाजोगाईला कारणे तर्ज पुणोवि कयसामाइय सुतुच्चारणा चरि For Private and Personal Use Only

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