Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ सम्पादकीय महाप्रजापति गौतमी को संसार से वैराग्य हुआ । उसने चाहा, जैसे अनेक शाक्य राजकुमारों ने, राजपुरुषों ने भिक्षु-जीवन स्वीकार किया है, वह भी करे । यह सोचकर सैकड़ों शाक्य महिलाओं से घिरी हुई गौतमी भगवान् बुद्ध के समक्ष उपस्थित हुई, निवेदन किया, भन्ते ! जैसे अनेक शाक्यकुमारों ने आपसे उपसंपदा प्राप्त की है, मैं भी चाहती हैं, मुझे उपसंपदा प्रदान करें। __बुद्ध ने कहा-गौतमी ! यह संभव नहीं है । नारी को मैं भिक्षु-जीवन स्वीकार करने का अधिकार नहीं देता। गौतमी बड़ी दु:खित एवं खिन्न हुई। उसका मुख विवर्ण हो गया, आँखें भर पाई। आखिर क्या करती, निराश होकर लौट गई। गौतमी का मानस वैराग्य से उद्वेलित था। वह राजप्रासाद में नहीं टिक सकी । कुछ समय बाद वह फिर बुद्ध की सेवा में उपस्थित हई और उसने पूर्ववत वैसा ही निवेदन कियाभन्ते ! मुझे उपसंपदा प्रदान करें।। बुद्ध ने कहा---गौतमी ! ऐसा हो नहीं सकता, मैं नारी को भिक्षु-संघ में समाविष्ट होने की आज्ञा नहीं देता। शोक-विह्वल गौतमी वापस उन्हीं पैरों लौट चली। राजप्रासाद में पाई। मन को टिकाने का प्रयत्न किया, टिका नहीं पाई। वह अपने को नहीं रोक सकी । उसने काषाय-वस्त्र धारण किये, अपने लम्बे कोमल के श नोच डाले। यों खिन्न एवं विवर्णमुख महाप्रजापति गौतमी शाक्य महिलाओं को साथ लिये भगवान् बुद्ध जहाँ विराजमान थे, पाई। भगवान् बुद्ध के प्रमुख प्रन्तेवासी आयुष्मान् आनन्द भगवान् की सेवा में उपस्थित थे, जो महाप्रजापति गौतमी से उसका अभिप्राय जान चुके थे। अानन्द ने तथागत से सविनय पूछा-भन्ते ! आप द्वारा निरूपित धर्म क्या किन्हीं विशिष्ट जनों के लिए है, या सबके लिए है ? बुद्ध ने कहा---आयुष्मन् अानन्द ! मेरा धर्म सबके लिए है। इस पर प्रानन्द बोलाभन्ते ! महाप्रजापति गौतमी विरक्त हो उपसंपदा ग्रहण करना चाहती है। भन्ते ! जब आपके जन्म लेते ही आपकी माता का निधन हो गया, तब महाप्रजापति गौतमी ने ही प्रापका लालनपालन किया, स्तन्य-पान कराया, आपको बड़ा किया। प्राप पर, हम सब पर, भिक्षु-संघ पर महाप्रजापति गौतमी का बड़ा उपकार है। गौतमी विरक्त हो उपसंपदा ग्रहण करना चाहती है, पाप स्वीकार नहीं करते ? तथागत ने कहा-आनन्द ! मैं नारी को भिक्षु-जीवन अपनाने की स्वीकृति नहीं देता। किन्तु तुम कहते हो, प्राग्रह करते हो, इसलिए मैं नारी को भिक्ष-संघ में लेना स्वीकार करता आई घड़ी QUI वंदन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 1288