Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 8
________________ प्रकाशकीय मानव में वास्तविक मानवता के विकास के लिए उत्तरदायी हैं सन्त जन । सन्तों का आदर्श जीवन और उनकी वरद वाणी ने मानव जाति को दिशाबोध कराया है और मानवता को सर्वांगसुन्दर बनाने का सदैव सत्प्रयत्न किया है। वे यह सब करते हैं मान-सम्मान, पूजाप्रतिष्ठा एवं अन्य प्रकार की लोकंषणा से निरपेक्ष होकर 'परंवेति-चरैवेति' यह उनका जीवनमंत्र होता है । वे अपनी साधना की सुरभि से प्राणिमात्र को सुरभित करके भी अपनी यश-कीर्ति या प्रशंसा की कामना नहीं करते। परोपकार मान कर सर्वथा निरभिमान रहते हैं। किन्तु मनीषी जनों का भी यह परम कर्त्तव्य है कि वे जगत् के महान् उपकारक, मानव में मानवता की प्रतिष्ठा करने वाले और इस भूतल पर स्वर्ग की अवतारणा करने वाले सत्पथप्रदर्शक सन्तों के प्रति अपनी मान्तरिक कृतज्ञता प्रकट करें, अपनी श्रद्धा व्यक्त करें मौर उनके प्रदर्श जीवन के प्रति अपना प्रमोदभाव जतलाएँ । यद्यपि ऐसा करके भी उनके ऋण से हम मुक्त नहीं हो सकते तथापि अपने कर्तव्य पालन के लिए किंचित् सन्तुष्टि का अनुभव कर सकते हैं। प्रस्तुत 'अर्चना दीक्षा स्वर्ण जयन्ती वन्दन अभिनन्दन ग्रन्थ' इसी उद्देश्य से प्रेरित एक सामान्य उपक्रम है, जो अध्यात्मयोगिनी परम विदुषी, प्रखर व्याख्यात्री श्री अर्चनाजी म० की श्राती दीक्षा के पचास वर्ष पूर्ण होने पर होने वाले समारोह को स्मरणीय बनाने के लिए किया गया है। महासती श्री उमरावकुंवरजी म० 'अर्चना' का समग्र जीवन व्यवहार, आचार, विचार और उनके कंठ से उद्भूत होने वाले उद्गार मनुष्यमात्र को दिशाबोध कराने वाले हैं। उनकी दिव्य भव्य बाह्यमुद्रा उनकी प्रान्तरिक शुचिता और पवित्रता को इंगित करती है। मानवजाति के लिए उनका व्यक्तित्त्व परम वरदान है । समाज के प्रति उनके असीम उपकार हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ में विभिन्न मतों एवं विचारों वाले मनीषी विद्वानों के निबन्धों का संकलन किया गया है। उनमें अभिव्यक्त विचार उनके ही समझे जाएं। यह घावश्यक नहीं कि प्रकाशन समिति उनसे सहमत ही हो ग्रन्थ- प्रकाशन में जिन महानुभावों का प्रार्थिक एवं बौद्धिक सहयोग प्राप्त हुआ है, उन सब के प्रति विनम्र कृतज्ञताज्ञापन करना हम अपना कर्तव्य मानते हैं। Jain Education International विनम्र उत्तमचन्द मोदी, मंत्री, मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, ब्यावर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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