Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 18
________________ अर्चनार्चन | १५ वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम तीर्थंकर से अन्तिम तीर्थंकर पर्यन्त चतुर्विध धर्म संघ में महावताराधना के सन्दर्भ में संख्याक्रम की दृष्टि से नारियों का जो स्थान रहा है, निःसन्देह आश्चर्य कर है। वह इस प्रकार है शासन-काल साधु-संख्या साध्वी-संख्या ३००००० प्रथम तीथंकर दूसरे तीर्थंकर तीसरे तीर्थंकर चौथे तीर्थंकर पांचवें तीर्थंकर छठे तीर्थंकर सातवें तीर्थंकर आठवें तीर्थंकर नौवें तीर्थंकर दसवें तीर्थंकर ८४००० १००००० २००००० ३००००० ३२०००० ३३०००० ३००००० २५०००० २००००० १००००० ३३६००० ६३०००० ५३०००० ४२०००० ४३०००० ३८०००० १२००० १००००६ ५० लाख क्रोड सागरो. ३० लाख क्रोड साग. १० लाख क्रोड साग. ९ लाख क्रोड साग. ९० हजार कोड साग. ९ हजार कोड सागरो. ९०० करोड सागरोपम ९० क्रोड साग. ९ क्रोड सागरोपम एक क्रोड सागर में सौ सागर ६६ लाख २६ हजार वर्ष कम । ५४ सागर ३० सागर नौ सागर ४ सागर ३ सागर में पौन पल्योपम कम अर्द्ध पल्योपम पाव पल्योपम में एक हजार वर्ष कम एक हजार करोड वर्ष ५४ लाख वर्ष ६ लाख वर्ष ५ लाख वर्ष २२३०० वर्ष उणा ८४००० वर्ष ८४००० वर्ष २१ हजार वर्ष ग्यारहवें तीर्थंकर बारहवें तीर्थंकर तेरहवें तीर्थंकर चौदहवें तीर्थंकर पन्द्रहवें तीर्थंकर सोलहवें तीर्थंकर सतरहवें तीर्थंकर अठारहवें तीर्थंकर उन्नीसवें तीर्थंकर बीसवें तीर्थंकर इक्कीसवें तीर्थंकर बाईसवें तीर्थंकर तेबीसवें तीर्थंकर चौबीसवें तीर्थकर ८४००० ७२००० ६८००० ६६००० ६४००० ६२००० १०३००० १००००० १००८०० ६२००० ६२४०० ८९००० ६०६०० ६०००० ५५००० ५०००० ४१००० ४०००० ३८००० ३६००० ५०००० ४०००० ० २०००० १८००० १६००० १४००० उत्तरवर्ती काल में भी धर्म-संघ में साध्वियों का बड़ा उत्कृष्ट स्थान रहा है। कतिपय ऐसी साध्वियां भी हुई हैं, जिन्होंने अपने तत्त्वनिष्ठ, साधनानिष्ठ व्यक्तित्व की धर्म-संघ पर अमिट छाप छोड़ी। ऐसी महिमामंडित साध्वियों में प्रातःस्मरणीया याकिनी महत्तरा का नामोल्लेख करते हुए वास्तव में बड़े गर्व का अनुभव होता है । जैन जगत् को हरिभद्र जैसे । आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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