Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 20
________________ अर्चनार्चन | १७ - - महासती श्रीचंपाकुंवरजी ने जिन अत्युत्तम, सुयोग्य पात्रों का निर्माण किया, महासतीजी श्रीरायकुंवरजी का उनमें महत्त्वपूर्ण स्थान था। श्रीरायकुंवरजी महासती श्रीचंपाकुंवरजी की अन्तेवासिनी थीं, उत्तराधिकारिणी थीं । तपश्चरण, योगानुष्ठान एवं पाराधना में तन्मयता उनके जीवन के प्रमुख अंग थे । उन्हें विचित्र दिव्य दैविक शक्तियां, विभूतियाँ प्राप्त थीं। उन्होंने अनेक भव्यात्मानों को प्रतिबोधित किया जिन्होंने आत्म-कल्याण के साथ-साथ लोक-कल्याण के वे कार्य किये, जो उन्हें सदा अजर, अमर बनाये रखेंगे । महासती श्रीरायकंवरजी के व्यक्तित्व की गरिमा को उनकी अन्तेवासिनी महासती श्रीचौथांजी ने न केवल सहेजा ही, प्रत्युत उसे स्वाध्याय, साधना एवं प्रभावना द्वारा उत्तरोत्तर प्रसत वृद्धिंगत किया । पाप द्वारा प्रतिबोधित स्वामीजी श्री जोरावरमलजी म. मा., पूज्य कानमल जी म. सा., श्री स्वामीजी श्री हजारीमल म. सा., जिन्होंने जिन शासन का प्रखर उद्योत किया। महासती श्री चौथांजी ग्रागम-निष्णात थीं । आगमों के गूढ़ रहस्यों की इतनी मर्मज्ञा थीं कि न केवल अनेकानेक साध्वियों को ही वरन अनेक साधनों को भी उन्होंने आगमों का अध्ययन कराया। महासती श्रीचौथांजी की अन्तेवासिनियों में महासती श्रीसरदारकुंवरजी का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था, जिन्होंने अपनी पूजनीया गुरुणीजी से उत्तराधिकार में प्राप्त श्रतचारिख्यमय अभियान को अधिकाधिक वद्धिगत किया, विकसित किया। सन्तरत्न, धर्मशासन के महान सेवी स्वामी जी श्रीब्रजलालजी म. बहश्रुत पण्डितरत्न, विद्वद्वरेण्य, महान् ज्ञानयोगी युवाचार्यप्रवर श्री मिश्रीमलजी म. "मधुकर", साधकवर्य, आत्मार्थी मुनिश्री मांगीलालजी म. जैसी महान् आत्मा प्रों को उद्बोधित, उत्प्रेरित करने का श्रेय महासती श्री सरदारकुंवरजी म. को है । साथ ही साथ महासती श्री सरदारकुंवरजी म. ने न केवल जगत् को, वरन् समग्र अध्यात्म-जगत् को पूज्य गुरुवर्या महासती जी श्री उमरावकुंवरजी "अर्चना" के रूप में एक ऐसा परम-भास्वर, उज्ज्वल, अखण्ड दीप्तिमय रत्न दिया, जिसके दिव्य आलोक से श्रमणसंस्कृति, साधना का विराक्षेत्र निःसन्देह विभासित है, प्रकाशित है। पूज्य गुरुवर्या महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. ने जहां एक ओर प्रागैतिहासिककालीन परम गौरवास्पद अध्यात्म-जगत् की ज्योतिर्मय नक्षत्र-स्वरूपा मां मरुदेवी, महासती राजीमती, महासती चन्दना तथा वर्तमानयुगीन गरिमामय श्रमणी महत्तरा याकिनी, स्वपरंपरोद्भासिनी महासती श्री चंपाकुंवरजी, श्री रायकुंवरजी, श्री चौथांजी तथा श्री सरदारकुंवरजी जैसी तप:पूत, त्यागवैराग्यालंकृत, धर्मप्रभावनानुरत महान् आत्माओं की गौरवमयी विरासत को सहेजा, वहाँ दूसरी ओर उन्होंने महामहिम, प्रातः स्मरणीय, शक्तिपुंज मुनिश्री जोरावरमलजी, म. मुनिश्री हजारीमलजी म., स्वामीजी ब्रजलालजी म. तथा युवाचार्यप्रवर 'श्रीमिश्रीमलजी म. के ज्ञानमय, साधनामय, सेवामय, धर्मोत्कर्षमय जीवन के सारतत्त्व को मोत्साह स्वायत्त किया। जैसाकि अापकी दीक्षा से पूर्व प्रापकी गुरुणीजी महासती श्री सरदारकुंवरजी को रत्न-प्राप्ति का स्वप्नाभास हुअा था, वह निश्चय ही पूज्या गुरुवर्या महासती श्री उमरावकुंवरजी म. "अर्चना' की उपलब्धि के रूप में शत-प्रतिशत सार्थक सिद्ध हुआ । आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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